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श्री महावीर जिन पंचकल्याणक पूजा
महावीर कहे पिअ माइ, १भार्या २सुत ३भगिनी भाइ ॥ थइ सर्व अनंत सगाइ, जगतमा क्या क्या प्रतिबंध करवो जीवनेरे ॥ हाल० ॥२॥ ध्नंदि कहे मोह नठारो, पणपाणथकी तुं प्यारो॥ वेठाय विरह नही तारो, तेथी रजा वे वर्ष पछी हुं आपीश तुजनेरे ॥ हाल० ॥३॥ जिन माणक जल्पे वारू, हो वचन प्रमाण तमारं ॥ पण आरंभ कोइ मुज सारु, करशो नही हुं रहीश ५फासु आहार ग्रहणेरे । हाल नही भाइ आपुं० ॥ ४ ॥
॥दोहा॥ प्रासुक आहारी रह्या, ब्रह्मचारी बे देवास ।। तीस वर्ष जग तातजी, वस्या एम धर वास ॥१॥ अवलोके अवघे 'विभु, संजम अवसर जाम ॥ नव लोकांतिक निर्जग, विनवे आवी ताम ॥२॥
॥ ढाल चोथी ॥ राग कल्याण || ___ अब मोये तारो वासुपूज्य ॥ ए देशी ॥ अब तुमे स्थापो धर्म तीर्थ ।। स्वामीहो मोक्ष गामी, अव तुमे स्थापो धर्म तीर्थ ॥ ए आंकणी ॥ हे अरिगंजन अरिहंत, बोधि दायक बलवंत, शिव मारग दर्शक संत ॥ शिव मारग दर्शक संतरे, तुमे स्थापो धर्म तीर्थ ॥अव०॥१॥ ___ १ स्त्री. २ पुत्र. ३ बहेन. ४ नंदिवर्द्धन. ५ अचित्त. ६ वर्ष ७ देव. ८ समकित.
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