Book Title: Pooja Sangraha
Author(s): Manikyasinhsuri
Publisher: Hiralal Bhagubhai Shah

View full book text
Previous | Next

Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ब्रह्मचर्य व्रत पूजा. ॥ ढाल ॥ राग ॥ माढ ॥ ॥ प्रेमनो कोल दीयो राज कुमार ॥ ए देशी प्रेमथी प्रभु पूजो परमाधार, परिहरवा पतिताचार ॥ प्रेमथी प्रभु पूजो परमाधार ॥ ए आंकणी॥ १अभ्यंजन नव करिये अंगे, तैल स्नान दूर टाल ॥ २कक्षा शिर २कर पद मुख ४क्षालन, वरजो वारंवार ।। सदा शील साचववा सुखकार ॥ प्रेमथी० ॥१॥ ५पुद्गल संवाहन परिहरिये, ६पुर परिकर्म प्रकार ।। अंग ७मलन पण नव आचरिये, विकृति जनक बिचार ॥ परम शील उपर जो होय प्यार ॥ प्रेमथी० ॥२॥ ९अनुलेपन १श्वासनने ११धूपन, १२वपु परिमंडण वार ।। नख १३कच वस्त्र १४समारचना वर, नव करिये निरधार ॥ विसरिये १५हसन वचन सविकार ॥ प्रेमथी० ॥३॥ नृत्य गीत वादित १६नट नर्तक, १७जल्ल मल्ल वली जेह ।। तास १८विलोकन विदूषक तजिये, शृंगार रसनां १९गेह ॥ अवर पण सर्व तजो शील धार ॥ प्रेमथी० ॥ ४ ॥ राग द्वेष संमोह प्रवर्द्धक, प्रमाद दोष असार । १ घी प्रमुख चोलवू. २ काख. ३ हाथ पग. ४ धोवू. ५ शरीर चंपावq. ६ शरीर संस्कार. ७ मर्दन करावq. ८ विकार उत्पन्न करनार. ९ विलेपन. १० सुगंध द्रव्यथी बास. ११ धूपथी धूपबु. १२ शरीर शोभा. १३ केश. १४ समावु. १५ हसवु. १६ नचावनार. १७ वरत्रा खेलकदोरडा उपर खेल करनार. १८ जोवं. १९ घर. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145