Book Title: Pattmahadevi Shatala Part 4
Author(s): C K Nagraj Rao
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 4
________________ प्रवेश किया। जकणाचार्य और डंकण ने उसका अनुगमन किया। जकणाचार्य अपने निवास की सजावट देखकर चकित हुए। उनका मन अतीत में चला गया। पर स्वयं को कुछ साच-विचार करने का अवकाश तक न दकर, अपने जोवन से लुप्त प्रकाश को फिर से धोतित करनेवाली पट्टमहादेवी जी के मन की विशालता का स्मरण करते हुए, थोड़ा-सा विश्राम किया। विश्रान्ति के समय सालेबहनोई एक दूसरे का कुशलक्षेम पूछने लगे। डंकण अपने अन्वेषण का किस्सा भी सुनाता रहा। इतने में भोजन के लिए बुलावा आया। नित्य का साधारण भोजन नहीं था वह। राजसी भोजन था। जकणाचार्य ने पूछा, "इतना सब क्यों बनाया?'' "पट्टमहादेवी जी की आज्ञा का उल्लंघन में कैसे कर सकता हूँ? ऐसा करके मैं जी सकूँगा?" मंचण ने कहा। "आज का भोजन प्रतिदिन के भोजन से भी अधिक स्वादिष्ट है न?"जकणाचार्य ने पूछा। "आज आपकी मानसिक शान्ति भोजन को रुचिकर बना रही है। वैसे तो रसोई एक ही तरह बनती है, यह आपको मालूम नहीं?'' मंचण ने कहा। भोजन के बाद जकणाचार्य ने कहा, "लक्ष्मी! हमें अब राजमहल जाना है। डंकण भी साथ चलेगा। तुम्हारे साथ मल्लोज रहेंगे।" __ "मुझे फिर आपके ये चरण मिलेंगे? अथवा उनकी स्मृति के सहारे ही समय काट लँगी। आप अपने काम पर जाइए । पट्टमहादेवीजी ने मुझे यहाँ के उत्तरदायित्वों से आगाह कर दिया है। अब तो मैं बालिका नहीं हूँ न? भाई चाहें तो वैसे ही घूम आवें। यहाँ बैठे-बैटे क्या करेंगे? साथ यह दासब्वे तो रहेगी ही। मैं पट्टमहादेवी के मातापिता से मिल उनका आशीर्वाद लेकर लौटूंगी। इसके लिए मुझे वहाँ जाना है।" लक्ष्मी ने कहा। अब तो एक सुनिश्चित कार्यक्रम ही बन गया। जकणाचार्य और डंकण राज महल गये। वहाँ शिल्पियों, आगम-शास्त्रियों तथा अधिकारी वर्ग के लोगों की सभा बैठी थी। सब सम्मिलित हुए थे। महाराज और पट्टमहादेवीजी भी पधारे थे । प्रस्तुत विषय पर विस्तार से चर्चा हुई। 'मूलविग्रह नया ही बने', यही निर्णय हुआ। उसके लिए निर्दोष शिला खोजकर डंकण ही उसे बनाएँगे, यह भी निश्चित हो गया। परीक्षाधीन चेन्नकेशव की मूर्ति के बारे में भी चर्चा हुई। शान्तलदेवी ने कहा, "अब तो उसका दोष-निवारण हो चुका है। मेरे लिए वह मूर्ति बहुत प्रिय है। विधिपूर्वक प्रतिष्ठित करने की सुविधा हो तो उसे अन्यत्र भी प्रतिष्ठित कर सकते हैं।" "वास्तव में इसी का दोष-निवारण कर, प्रतिष्ठा करने की बात हमने पहले ही 6:; पट्टमहादेवी सान्तला : भाग चार

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