Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01 Author(s): Osho Publisher: Unknown View full book textPage 9
________________ या इसके विपरीत उसी हठधर्मी के साथ कह सकते हो कि 'ईश्वर नहीं है।' आस्तिक और नास्तिक दोनो ही विश्वासी है। लेकिन विश्वास विज्ञान की दिशा नही है। विज्ञान का अर्थ है. 'जो है उसका अनुभव करना;किसी विश्वास की जरूरत नहीं। तो दूसरी बात याद रखनी है कि योग अस्तित्वगत है, अनुभव जन्य है, प्रायोगिक है। वहाँ किसी विश्वास की अपेक्षा नहीं, किसी निष्ठा की आवश्यकता नहीं। वहाँ केवल साहस चाहिए प्रयोग करने का। लेकिन इसी की तो कमी है। तुम विश्वास तो बड़ी आसानी से कर लेते हो, क्योंकि तब तुम स्वपांतरित होने वाले नही हो। विश्वास तो ऐसी चीज है,जो ऊपरी तौर पर एक सत ही ढंग से तुम से जुड़ जाती है; उससे तुम्हारा अंतस परिवर्तित नहीं होता तुम किसी स्वपांतरण की प्रक्रिया से नहीं गुजर रहे होते। तुम हि हो तो तुम अगले दिन ईसाई बन सकते हो। तुम सरलता से बदल जाते हो। तुम गीता की जगह कुरान या बाइबिल पकड सकते हो। लेकिन वह व्यक्ति, जिसके हाथ में गीता थी और अब जो बाइबिल या कुरान पकड़े हुए है, वह तो ज्यो का त्यो बना रह जाता है। उसने केवल अपने विश्वासो को बदल लिया है। विश्वास तो कपड़ों की भांति हैं। किसी आधार भूत तत्व का स्वपांतरण नहीं होता तुम भीतर वही के वही बने रहते हो। जरा हिंदू और मुसलमान की चीर फाड़ कर के देखो, भीतर दोनो एक समान ही है। हिंदू मंदिर जाता है और मुसलमान मंदिर से नफरत करता है। मुसलमान मस्जिद जाता है और हिन्दू मस्जिद से नफरत करता है। लेकिन भीतर दोनो एक जैसे ही आदमी हैं। अस्तित्वगत प्रयो विश्वास आसान है क्योंकि उस में तुम्हे वास्तव में कुछ करना नहीं पड़ता। वह तो एक छिछला-सा पहरावा है, सज्जा है;जिस क्षण चाहो उसे अलग करके रख सकते हो। योग विश्वास नहीं है। इसलिए यह कठिन है, दुष्कर है और कई बार तो लगता है कि बिलकुल असंभव है। योग एक त्वगत प्रयोग है। तुम किसी विश्वास के द्वारा सत्य को नहीं पाओगे, बल्कि अपने ही अनुभव द्वारा पाओगे अपने ही बोध द्वारा उसे उपलब्ध करोगे। और इसका अर्थ हुआ कि तुम्हें आमूल स्वप्न से स्वपांतरित होना होगा। तुम्हारा दृष्टिकोण, तुम्हारे जीने का ढंग, तुम्हारा मन, तुम्हारे चित का पूरा ढांचा-यह सब जैसा है उसे चकनाचूर कर देना होगा। कुछ नये का सृजन करना होगा। उसी नवतत्व के साथ तुम यथार्थ के सम्पर्क मे आ सकोगे। ___ योग मृत्यु तथा नव जीवन दोनो ही है। तुम जैसे हो, उसे तो मरना होगा। और जब तक पुराना मरेगा नही, नये का जन्म नहीं हो सकता। नया तुम में ही तो छिपा है। तुम केवल उसके बीज हो। और बीज को गिरना ही होगा, धरती में पिघलने के लिए। बीज को तो मिटना ही होगा, केवल तभी तुम में से नया प्रकट होगा। तुम्हारी मृत्यु ही तुम्हारा नव जीवन बन पायेगी। योग दोनों हैमृत्यु भी और जन्म भी। जब तक तुम मरने को तैयार न होओ तब तक तुम्हारा नया जन्म नहीं हो सकता। यह केवल विश्वास को बदलने की बात नहीं है।Page Navigation
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