Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 01 Author(s): Osho Publisher: Unknown View full book textPage 8
________________ जब तक तुम्हारे लिए यह क्षण न आये तब तक कितने ही योगासन किये चले जाओ लेकिन वह योग नहीं है। योग तो अंतस की ओर मुड़ना है। यह पूरी तरह विपरीत मुड़ना है। जब तुम भविष्य में गति नहीं कर रहे हो, जब तुम अतीत में नहीं भटक रहे हो, तब तुम अपने भीतर की ओर गतिमान होने लगते हो, क्योंकि तुम्हारा अस्तित्व अभी और यहीं है, वह भविष्य में नहीं है। तुम अभी और यहां उपस्थित हो- अब तुम यथार्थ में प्रविष्ट हो सकते हो। तब मन का इसी क्षण में उपस्थित रहना ज़रूरी है। पतंजलि का पहला सूत्र इसी क्षण की ओर संकेत करता है। इससे पहले कि इस प्रथम सूत्र पर चर्चा हो, कुछ और बातें समझ लेनी होंगी। पहली बात, योग कोई धर्म नहीं है, यह बात स्मरण रहे। योग हिन्दू नहीं है, मुसलमान नहीं है। योग तो एक विशुद्ध वितान है-गणित, फिजिक्स या कैमिस्ट्री की तरह। फिजिक्स न तो ईसाई है और न बौद्ध। चाहे ईसाइयों द्वारा ही फिजिक्स के नियमों की खोज की गयी हो, लेकिन फिर भी इस विज्ञान को ईसाई नहीं कहा जा सकता। यह संयोग मात्र है कि ईसाइयों ने फिजिक्स के नियमों का अन्वेषण किया। भौतिकी वितान तो मात्र वितान है। और योग भी मात्र एक विज्ञान है। यह फिर एक संयोगपूर्ण घटना ही है कि हिंदुओं ने योग को खोजा। लेकिन इससे यह हिन्दू तो न हुआ। यह तो एक विशुद्ध गणित हुआ आंतरिक अस्तित्व का। इसलिए एक मुसलमान भी योगी हो सकता है; ईसाई भी योगी हो सकता है। इसी तरह एक जैन,एक बौद्ध भी योगी हो सकता है। योग तो शुद्ध विज्ञान है। और जहां तक योग-विज्ञान की बात है पतंजलि इस क्षेत्र के सबसे बड़े नाम हैं। यह पुरुष विरल है। किसी अन्य की पतंजलि के साथ तुलना नहीं की जा सकती। मनुष्यता के इतिहास में धर्म को पहली बार वितान की अवस्था तक लाया गया। पतंजलि ने धर्म को मात्र नियमों का विज्ञान बना दिया, जहां विश्वास की जरूरत नहीं है। सब तथाकथित धर्मों को विश्वासों की जरूरत रहती है। धर्मों में परस्पर कोई विशेष अंतर नहीं है। अंतर है तो उनकी अलग-अलग धारणाओं में ही। एक मुसलमान के अपने विश्वास हैं; इसी तरह हिन्दू और ईसाई के अपने-अपने विश्वास हैं। अंतर तो विश्वासों में ही है। जहां तक विश्वासों की बात है, योग इस विषय में कुछ नहीं कहता। योग तो तुम्हें किसी बात पर विश्वास करने को नहीं कहता। योग कहता है : अनुभव करो। जैसे विज्ञान कहता है : प्रयोग करो, योग कहता है : अनुभव करो। प्रयोग और अनुभव एक ही बात है, उनकी दिशाएं अलग-अलग हैं। प्रयोग का अर्थ है कि तुम कुछ बाहर की ओर कर रहे हो अनुभव का अर्थ है कि तुम कुछ अपने भीतर कर रहे हो। अनुभव है एक आन्तरिक प्रयोग। विज्ञान कहता है, विश्वास मत करो, जितना बन पड़े संदेह ही करो। लेकिन अविश्वास भी मत करो, क्योंकि अविश्वास भी एक तरह का विश्वास ही है। तुम ईश्वर में विश्वास कर सकते हो या तुम निरीश्वरवाद की धारणा में विश्वास बना सकते हो। तुम आग्रह पूर्वक कह सकते हो कि ईश्वर हैPage Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 467