Book Title: Parshvabhyudayam
Author(s): Jinsenacharya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 263
________________ २६२ पार्वाभ्युदय मन्दारोनर्मवाक्यात्, पटुमृदुहसनाच्चम्पको वक्त्रवाता च्छूतो गीतान्नमेरुविकसति च पुरो नर्तनाकगिकारः । __ अर्थात् प्रियङ्गु वृक्ष सुन्दरी स्त्रियों के स्पर्श से चकूल (भौलसिरी) सुन्दरी के मुख स्थित मद्य के सेवन से, अशोत्र वृक्ष । बायें । चरण के आघात से, तिलक सुन्दरी के देखने, कुरबा आलिङ्गन से, मन्दार हँसीमजाक के बाक्य से, चम्पक सुन्दर तथा कोमल हास्य से, आम का पेड़ मुख की हवा से, नमेरु गाना से और कणिकार वृक्ष सामने सुन्दरी स्त्री के नृत्य करने से विकसित होता है। मूलं वोच्चैर्मनसि निहितं लक्ष्यते स्ववियोगातस्या साधाध्यसितमतेर्बहिणाधिष्ठिताना। तन्मय कलिका कामली नाराज-ले बद्धा मणिभिरनतिमौलवंशप्रकाशैः ॥३०॥ मूलमिति । किच तामध्ये तयोवृक्षयोमध्ये । बहिणा मयूरण । अपिष्टिताया अधिष्ठितमग्रं यस्याः मा । स्फटिकफलका स्फटिकमयं फलक पीठं यस्याः सा तथोक्ता । मनसिप्रोडवंशाप्रकाशः अनतिप्रौढानाम् अनतिकठोराणां वंशानां प्रकाश इव प्रकाशो येषां तैः । तरुण वेणुममच्चाय: 1 मणिभिः मरकतशिलाभिः । मले बडा कृत. वेदिकेत्यर्थः । कामचनो काञ्चनस्य विकारः काञ्चनी मौवर्णा । सा प्रसिद्धा। बासपष्टि: निवापदण्डः । “यलिंदर्दण्डे हारभेद मृदुकयाचुधान्नर" इति भास्करः । साथ इदानीम् । तस्याः कामिन्याः । मनसि चित्तं । त्ववियोगात् तव विरहात् । अध्यवसितमतः अध्यवसिना निश्चिता मृतिमरण यया तस्याः । निहितं प्रतिष्ठिनम् । उच्च: महत् । मूलं वा मूलमिव लक्ष्यते दृश्यते ॥३०॥ अन्वय-तन्मध्ये च [ या ] त्वद्वियोगात् तस्याः मनसि अद्य उच्चैः निहित अध्ययसितमृतेः मूलं वा सा अनतिप्रीत वंशप्रकाशः मणिभिः मूले बद्धा, बहिणा अषिष्ठिताम्रा स्फटिकफलका काञ्चनी वासयष्टिः लक्ष्यते । अर्थ-अशोक और बकुलवृक्ष के मध्यभाग में तुम्हारे वियोग के कारण उस किन्नरी के मन में आज मरने के निश्चय के मूल (जड़ या वेदिका) के समान स्थापित की गई या गाड़ा गई कोमल बाँस के समान कान्ति से युक्त ( पन्ना नामक ) मगियों की वेदिका बालो, मोर के द्वारा अधिष्ठित ऊर्श्वभागों से युक्त और स्फटिक मणिमय पोठ सहित स्वर्णमयी बासयष्टि ( निवासस्थान का दण्ड ) दिखती है। तां कामिन्यः कुसुमधनुषो वैजयन्तीमिका, मस्थार्चन्ति प्रबलरुविता सापि साध्वी तदापत्य ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337