Book Title: Parmarth Vachanika Pravachan Author(s): Hukamchand Bharilla, Rakesh Jain, Gambhirchand Jain Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 8
________________ संक्षिप्त परिचय किया। निश्चय-व्यवहार का स्वरूप भी सही-सही समझाया और कवि को उनके निमित्त से ही स्याद्वाद का सच्चा ज्ञान, सत्य की प्राप्ति और आत्मा का अनुभव हुआ। __इसके बाद कविराज का चित्त स्थिर और शान्त हो गया। वे जो पाना चाहते थे, उन्हें वह मिल गया था। उन्होंने यह दृढ़तापूर्वक स्वीकार कर लिया था कि सत्य पन्थ 'निर्ग्रन्थ दिगम्बर' ही है। अध्यात्म चिंतन-मनन के साथसाथ उन्होंने साहित्य निर्माण एवं शिथिलाचार के विरुद्ध शुद्ध अध्यात्म मार्ग का प्रचार व प्रसार भी तेजी से आरम्भ कर दिया था। उनके द्वारा रचित 'नाटक समयसार' की चर्चा घर-घर में होने लगी थी। गली-गली में लोग उसके छन्द गुनगुनाया करते थे। ___ श्रीमद् कुन्दकुन्दाचार्यदेव रचित 'समयसार' एक महान् क्रान्तिकारी आध्यात्मिक ग्रन्थराज है। उसके निमित्त से लाखों लोग समय-समय पर सत्य पन्थ में लगे हैं। महाकवि बनारसीदास के ठीक तीन सौ वर्ष बाद एक और श्वेताम्बर साधु कानजी मुनि' इसके निमित्त से दिगम्बर धर्म की और आकर्षित ही नहीं हुए, वरन् उनके माध्यम से अध्यात्म के क्षेत्र में आज एक महान क्रान्ति उपस्थित हो गई है। इसकारण आज वे दिगम्बर समाज में अध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी' के नाम से जाने-माने जाते हैं। ___तत्समय पण्डित बनारसीदासजी का बढ़ता प्रभाव न तो श्वेताम्बरों को ही सुहाया और न ही भट्टारकपन्थी शिथिलाचारी दिगम्बरों को। अतः दोनों ओर से बनारसीदासजी द्वारा संचालित आध्यात्मिक क्रान्ति का विरोध हुआ। ___ श्वेताम्बराचार्य महामहोपाध्याय मेघविजय ने तो उसके विरोध में 'बनारसी-मत खण्डन (युक्ति प्रबोध)' नामक ग्रन्थ स्वोपज्ञ टीका सहित लिखा। पर ज्यों-ज्यों, विरोध ने तेजी पकड़ी, त्यों-त्यों यह आध्यात्मिकपन्थ, जिसे बाद में तेरापन्थ भी कहा गया, फलता-फूलता गया और आगे चलकर उस युग के महान् विद्वान् पण्डित टोडरमलजी का सहारा पाकर देशव्यापी हो गया।Page Navigation
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