Book Title: Parichay Patra
Author(s): Rupchand Jain
Publisher: Antarrashtriya Jain Sammelan

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Page 15
________________ ( १३ ) लगा कर उनको प्रकाशन विभाग के सिपुर्द करना, प्राचीन शीलालेख आदि का पता लगाना। प्राचीन मूर्तियों या खण्डहरों का पता लगाना तथा उनकी रक्षा करना । सभी प्राचीन या नवीन मन्दिरों की देखभाल करना तथा जहां पर मरम्मत की आवश्यकता हो, वहां पर अच्छी प्रकार से मरम्मत करवाना आदि। सञ्चालन-विभाग सम्मेलन के अन्तर्गत एक सञ्चालन-विभाग होगा। इस सञ्चालन विभाग के अन्तर्गत धार्मिक तीर्थ क्षेत्र, मन्दिर, औपधालय, स्कूल, कालेज, पुस्तकालय, सामाजिक संस्थाय आदि हैं जिनका प्रबन्ध या देखरेख की जिम्मेदारी पूर्ण रूपसे सञ्चालन विभाग के अन्तर्गत होगी। मन्दिरों या तीर्थभत्रों की चलअचल सम्पति का प्रबन्ध भी इस विभाग को ही करना पड़ेगा। धार्मिक-त्यौहारों या उत्सवों के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यों का प्रबन्ध करना। सम्मेलन के प्रत्येक विभाग के प्रबन्ध की जिम्मेदारी सञ्चालन विभाग के अन्तर्गत होगी। आर्थिक-विभाग सम्मेलन के अन्तर्गत एक आर्थिक या वित्त विभाग होगा। इस विभाग द्वारा वार्षिक बजट कार्यकारिणी समिति के सम्मुख उपस्थित किया जायगा। लेन-देन सम्बन्धी सभी प्रकार के कार्य इस विभाग के अन्तर्गत होंगे। मन्दिरों की चल अचल सम्पत्ति की देखभाल करना, उनके हिसाब का निरीक्षण करना, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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