Book Title: Parichay Patra
Author(s): Rupchand Jain
Publisher: Antarrashtriya Jain Sammelan

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Page 16
________________ ( १४ ) जहां पर धन की आवश्यकता हो, वहां पर धन की सहायता करनो, चन्दा इकट्ठा करना, आय-व्यय का पूर्ण व्यौरा रखना, चन्दे या भाड़े की रकम वसूल करना। कहने का तात्पर्य यह है कि अर्थ सम्बन्धी सम्पूर्ण कार्य इस विभाग द्वारा सम्पन्न होंगे। सदस्य सम्मेलन के सदस्य निम्नलिखित रूप से बनाये जायेगें। जिनको सार्वजनिक समिति के अधिवेशन में भाग लेने का अधिकार होगा। १-साधारण सदस्य २-वार्षिक सदस्य ३-आजोवन या स्थायी सदस्य ४-माननीय सदस्य ... साधारण सदस्य-प्रत्येक साधारण सदस्य जो सम्मेलन के नियमों एवं उद्देश्यों का पालन करते हुए २) दो रुपया सम्मेलन के लिए तथा एक रुपया पुस्तकालय के लिए मासिक देता रहेगा, वही सम्मेलन का साधारण सदस्य बनाया जा सकेगा। . वार्षिक सदस्य -प्रत्येक साधारण सदस्य जो सम्मेलन के नियमों एंव उद्देश्यों का पालन करते हुए दो रुपया सम्मेलन के लिए तथा एक रुपया पुस्तकालय के लिए मासिक लगातार पाँच वर्ष तक नियत समय पर देता रहेगा तथा भविष्य में बार्षिक सदस्य बनना चाहेगा, तो वह ५१) रुपया देकर बार्षिक सदस्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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