Book Title: Parichay Patra
Author(s): Rupchand Jain
Publisher: Antarrashtriya Jain Sammelan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... * परिचय पत्र * वर्तमान युग स्वतंत्रता का युग है । भारत वर्ष एक गणतंत्र राज्य है। इस भौतिक युग में जिस प्रकार विश्व उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो रहा है, उसी को ध्यान में रखते हुए वर्तमान समय में एक ऐसी धार्मिक संस्था की आवश्यकता है जो समग्र विश्व में जैन धर्म का प्रचार कर सके तथा समस्त जैन समाज को एकता के सूत्र में संगठित कर सके, इसी बात को लक्ष्य में रखते हुये अन्तर्राष्ट्रीय जैन सम्मेलन की स्थापना की गयी है। इस पुस्तक में आपके समक्ष इस संस्था की रूप रेखा, उद्देश्य, नियमावली आदि को उपस्थित किया जा रहा है। संस्था के उदेश्यों की पूर्ति के लिए सम्मेलन समाज की प्रत्येक संस्थाओं मन्दिरों, समाचार पत्रों, तीर्थ क्षेत्रों, आदि के व्यवस्थापको एवं संचालकों से अनुरोध करता है कि वह उपरोक्त पते पर परिचय पत्र भेजने की कृपया करेगे। बिना परिचय पत्र के सम्मेलन आगे बढ़ने में अपने को असमर्थ पाता है इस लिये सम्मेलन समाज की दिगम्बर श्वेताम्बर व उप सम्प्रदाय सम्बन्धी संस्थाओं से अनुरोध करता है कि वह शीघ्रातिशीघ्र परिचय पत्र भेजने की कृपा करेंगे। परिचय पत्र में निम्नलिखित विषयों का होना अत्यावश्यक है:--- १ प्रत्येक सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक आदि संस्थाओं का जिनका सम्बन्ध जैन समाज से हो पूर्ण पोस्टल ऐड्रेस के साथ परिचय पत्र भेजें। .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ धार्मिक मन्दिरों, जैन औषधालयों, जैन कालेजों, जैन स्कूलों आदि का पूर्ण पोस्टल ऐड्रेस के साथ परिचय पत्र भेजें। ३ प्रत्येक संस्थाओ का उद्देश्य, कार्य विवरण तथा प्रधान मंत्री व अन्य पदाधिकारियों सहित जो वर्तमान समय में कार्य कर रहे हों, परिचय पत्र भेजने की कृपा करें। ४ इसके अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार का परिचय पत्र भेजना हो तो वह भी भेजने की कृपा करेंगे। इस कार्य के लिये सम्मेलन आप महानुभावों का सर्वदा कृतज्ञ रहेगा। इसके अतिरिक्त किसी संस्था को अपने गांव, शहर या प्रान्त को छोड़ कर अन्य किसी दूसरे प्रान्त या बाहर की जानकारी हो तो वह भी पूर्ण विवरण के साथ भेजने की कृपा करें। ..... . .. दिगम्बर, श्वेताम्बर जैन समाज से सम्बन्धित समस्त उपसम्प्रदाय सम्बन्धी संस्थाओं, स्कूलों आदि का परिचय किसी भी प्रकार का भेदभाव न रखते हुए भेजने की कृपा करें। "जय जिनेन्द्र" समस्त जैन समाज की संस्था अन्तर्राष्ट्रीय जैन सम्मेलन, + . . रूपचन्द जैन प्रधान मन्त्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * सम्मेलन का परिचय * __ स्थापना तथा उद्देश्य जैन धर्म एक प्राचीन तथा स्वतन्त्र धर्म है । “अहिंसा परमो धर्मः” उसका मूल मन्त्र है । जैन आचार्यों ने समय-समय पर द्रव्य क्षेत्र काल तथा भाव के अनुसार आचरण करने का सदुपदेश दिया है। विश्व में तेजी से होने वाले परिवर्तनों को लक्ष्य करके तथा भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित 'धार्मिक न्यास विधेयक' को ध्यान में रखते हुये समयानुसार सामाजिक व्यवस्था, सांस्कृतिक व्यवस्था, राजनैतिक व्यवस्था, आर्थिक व्यवस्था धार्मिक व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था, तथा समग्र विश्व में जैन धर्म के प्रचार हेतु कार्तिक कृष्णा १५ वीर निर्माण सम्वत् २४८७ में अन्तर्राष्ट्रीय जैन सम्मेलन नामक संस्था की स्थापना की गयी। सम्मेलन एक क्रान्तिकारी संगठन होगा; जो जैन धर्म समाज एवं देश को अन्य देशों की तरह हमेशा उन्नति के पथ पर अग्रसर होते हुये देखना चाहेगा । इसलिये इस सम्मेलन को समाज में प्रचलित कुरीतियों, त्रुटियों, बुराइयों एवं बढ़ी हुई फिजुल खर्चियों के विरुद्ध आवाज उठानी पड़ेगी तथा उसके लिए सम्मेलन के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं को समाज का कड़ा प्रतिवाद भी सहन करना पड़ेगा, परन्तु प्रत्येक विरोध के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) उपरान्त भी सम्मेलन को बल ही प्राप्त होगा । इस प्रकार गत वर्ष में जैन धर्म एवं समाज में जो परिवर्तन होंगे, उसका अधिकतर श्रेय सम्मेलन को ही होगा तथा जैन समाज में वही एक जीवित संस्था होगी जो अखिल विश्व में जैन धर्म को फैलाने के लिये हमेशा तत्पर रहेगी। इस सम्मेलन का प्रधान उद्देश्य देश व विदेश में जैन धर्म का प्रचार करना, अहिंसामिशन की स्थापना करके विश्व में अहिंसा के सिद्धान्तों का प्रचार करना, मानव जाति को शाकाहारी बनाना, शास्त्रों का अनुसंधान करना व संग्रह करना आदि है। इसके अतिरिक्त इसके छोटे-बड़े अनेक उद्देश्य और भी हैं। इस प्रकार यह सम्मेलन एक विस्तृत रूप रेखा तैयार कर जैन धर्म को एक विश्व व्यापी धर्म बनाने की कोशिश करेगा। जिससे कि विश्व में शान्ति स्थापित हो तथा मानव, मानव की सहानुभूति प्राप्त करें । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नियमावली नाम-इस संस्था का नाम “अन्तर्राष्ट्रीय जैन सम्मेलन" रहेगा। प्रधान कार्यालय-इस सम्मेलन का प्रधान कार्यालय कलकत्ता में रहेगा तथा यह संस्था विश्व की सभी जैन एवं अहिंसाप्रधान संस्थाओं से सम्बन्धित रहेगी। इसके अतिरिक्त इसकी देश-विदेश में भी अनेक शाखायें होंगी। विभाग-इस सम्मेलन के अन्तर्गत अनेक विभाग होंगे जो इस संस्था के कार्यों की देख-भाल किया करेंगे। वे विभाग निम्नलिखित होंगे: १-प्रचार-विभाग २-प्रकाशन-विभाग ३-शिक्षा-विभाग ४-पुस्तकालय-विभाग ५-सेवा-विभाग ६–राजनैतिक-विभाग ७-संगीत-विभाग ८-पुरातत्त्व-विभाग है-सञ्चालन-विभाग १०-आर्थिक-विभाग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रचार-विभाग सम्मेलन के प्रधान कार्यालय कलकत्ता के अन्तर्गत एक सुव्यवस्थित विश्व-व्यापी प्रचार विभाग होगा, जिसके प्रचारक देश-विदेश के भिन्न-भिन्न भागों में जाकर जैन एवं अहिंसा धर्म का प्रचार किया करेंगे तथा सम्मेलन की अहिंसामयी वाणी को विश्व के प्राणीमात्र के पास पहुंचायेंगे। सम्मेलन चाहता है कि जैन समाज देश में फैली हुई रूढ़ियों, कुरीतियों एवं फिजुल खचियों आदि का परित्याग करके देश के अन्दर एक आदर्श उपस्थित करे। क्योंकि सच्चा आदर्श इन्हीं रूढ़ियों एवं कुरीतियों के कारण आज जैन समाज अन्य जातियों एवं धर्मों से बहुत पिछड़ा हुआ है। सम्मेलन अपने प्रचार द्वारा इन कुरीतियों को हटा कर एक सच्चा आदर्शमय वातावरण उपस्थित करेगा। सम्मेलन का लक्ष्य विश्व की जैन तथा अजैन जनता में जैन तथा अहिंसा धर्म के मौलिक सिद्धान्तों का प्रचार करना तथा साधारण जनता में अहिंसा आदि उच्च सिद्धान्तों का प्रचार कर जैन धर्म में दीक्षित होने की भावना जागृत करना है । सम्मेलन जैन धर्म को जीता-जागता भारत का ही नहीं वरन् समस्त विश्व का धर्म देखना चाहता है । एक जैन धर्म ही ऐसा धर्म है जो अपने व्यापक प्रचार द्वारा समस्त विश्व को लड़ाई से उन्मुख कर सच्ची शान्ति स्थापित कर सकता है। इसलिये सम्मेलन अपने प्रचारकों की सहायता से विश्व भर में जैन धर्म का प्रचार कर एक सच्चा वास्तविक धर्म होंने का आदर्श उपस्थित करेगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (&) प्रकाशन विभाग सम्मेलन के अन्तर्गत एक वृहत प्रकाशन विभाग होगा, जिसमें हिन्दी, इङ्गलिश, संस्कृत, उर्दू, फारसी, बङ्गला, तामिल, गुजराती, जापानी, मराठी, लेटिन, फ्रेंच, जर्मन, चीनी या अमेरिकन आदि भाषाओं की पुस्तकें समय-समय पर प्रकाशित होती रहेगी जिनके द्वारा विश्व भर में जैन तथा अहिंसा धर्म का प्रचार होगा । सम्मेलन का यह विभाग हिन्दी न जानने वाले विश्व के समस्त देशों में भी अपने साहित्य की सहायता से जैन धर्म का प्रचार कर अहिंसा रूपी शान्ति का सन्देश देगा | सम्मेलन के प्रकाशन विभाग द्वारा हमेशा नवीन पुस्तकों का प्रकाशन होता रहेगा । प्राचीन तथा वर्तमान लेखकों द्वारा संग्रहीत सभी पुस्तकों तथा शास्त्रों का भी समयानुसार प्रका शन होता रहेगा । वर्तमान समय को लक्ष्य में रख कर भी अनेक पुस्तकें वर्तमान युग के आधार पर प्रकाशित की जायगी । वर्तमान युग के आधार पर कहानी, उपन्यास नाटक आदि पुस्तकों का भी प्रकाशन किया जायगा जो आनन्द प्रदान करने के साथ ही साथ धार्मिक शिक्षा का भी प्रचार करेगा । अहिंसा विश्वविद्यालय द्वारा प्रस्तावित सभी प्रकार की पुस्तकों का भी प्रकाशन होता रहेगा । इस प्रकार सम्मेलन के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रचार कार्य में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त होगी । सम्मेलन के प्रकाशन विभाग द्वारा 'अहिंसा-सन्देश' नामक पत्रिका का प्रकाशन किया जायगा । जो सम्मेलन के प्रचार कार्य में महत्वपूर्ण योगदान देगा। सम्मेलन आप महानुभावों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६) आशा करता है कि जैन समाज की जटिल समस्याओं को मत करने के लिए इस पत्र की सहायता करते रहेंगे । यह पत्र जैन समाज का सुधारक पत्र होगा तथा अनेक भाषाओं में प्रकाशित किया जायगा । यह पत्र बीसवीं शताब्दी में धर्म प्रचार, समाज सुधार, शासन सुधार तथा शिक्षा प्रसार के कार्य में अधिक सहयोग प्रदान करेगा तथा सम्मेलन को दिनप्रतिदिन शक्ति प्रदान करता रहेगा। जिस वेग के साथ आज देश आगे बढ़ रहा है, हमें भी उसी तरह से ही अपने सामाजिक, धार्मिक, शिक्षा सम्बन्धी तथा सांस्कृतिक कार्यों को आगे बढ़ाना होगा | हमारा प्रमुख उद्देश्म यही होना चाहिये कि हम जहां तक हो सके इस संस्था के कार्यों में भाग लेकर समाज तथा धर्म की रक्षा करें। यह संस्था जैन समाज की ही संस्था है । इसलिये हम लोगों को सारे समाज का सहयोग मिलना चाहिये तब ही हम इस सम्मेलन के उद्देश्यों में सफल हो सकेंगे। F सम्मेलन के अन्तर्गत एक वृहत छापाखाना होगा, जिसमें सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक भौगोलिक तथा शिक्षा सम्बन्धी सभी प्रकार की पुस्तकों को छापा जायेगा । सम्मेलन से सम्बन्धित सभी विभागों के छपाई के कार्य को भी छापेगा तथा विश्व में जैन तथा अहिंसा का प्रचार करने के लिये 'अहिंसा-सन्देश' तथा साथ ही छोटे-छोटे ट्रैक्टों को भी प्रकाशित करेगा । इस छापाखाने द्वारा शास्त्र, स्कूली पुस्तकें तथा अन्य प्रकार की पुस्तकों का भी प्रकाशन किया जायेगा । इसलिये इस छापाखाने के लिए किमती मशोंनों का Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७ ) खरीदना अत्यावश्यक है । सम्मेलन समाज से अनुरोध करता है कि इस कार्य के लिये समाज इस संस्था को पूर्ण सहयोग प्रदान करेगा । शिक्षा विभाग सम्मेलन के अन्तर्गत सरकार द्वारा रजिस्टर्ड एक विश्वविद्यालय होगा, जिसका नाम 'अहिंसा विश्व विद्यालय' रखा जायगा । सम्मेलन चाहता है कि मानव मात्र के अन्दर जैन तथा अहिंसा की सच्ची भावना हो तथा उसी रूप में मानव मात्र के अन्दर नैतिक तथा धार्मिक भावना का प्रचार किया जाय । बिना विश्वविद्यालय के सम्मेलन का यह उद्देश्य सफल नहीं हो सकता । सम्मेलन जैन समाज के प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित देखना चाहता है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक विश्वविद्यालय का होना अत्यावश्यक है । इस विश्वविद्यालय की शिक्षा वर्तमान तथा प्राचीन युग के आधारपर निश्चित की जायेगी । सम्मेलन अपने दृढ़ विश्वास के साथ जैन समाज को विश्वास दिलाता है कि सम्मेलन का शिक्षा विभाग अपने योग्य सदस्यों की सहायता से एक ऐसा शिक्षाप्रद आदर्श उपस्थित करेगा, जिसका जरा-सा भी अंश दूसरे विश्वविद्यालयों में देखने के लिये नहीं मिलेगा । सम्मेलन अपने शिक्षा विभाग की सहायता से कम खर्च में व्यापारिक, वैज्ञानिक, धार्मिक, कलात्मक, साहित्यात्मक आदि प्रकार की शिक्षा देगा । इस विभाग का उद्देश्य प्रत्येक मानव के हृदय के अन्दर जैन धर्म की भावना को उत्पन्न * Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करना है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना प्राचीन युग और आधुनिक युग दोनों युगों के आधार पर होगी। इस विश्वविद्यालय से सम्बन्धित प्रत्येक स्कूल एवं कालेज में छात्र-निवास का होना आवश्यक है। इस विश्वविद्यालय से सम्बन्धित प्रत्येक विद्याथीं को विश्वविद्यालय के नियमों का पालन काना होगा। जैन धर्म की शिक्षा अनिवार्य होगी। इस विश्वविद्यालय से सम्बन्धित किसी भी स्कूल व कालेज में शिक्षा शुल्क, छात्र निवास शुल्क, पोशाक शुल्क या भोज्य पदार्थ शुल्क नहीं लिया जायगा । प्रत्येक स्कूल व कालेज का कर्तव्य होगा कि वह विद्यार्थी का नाम, पूरा पता तथा व्यवसाय के बारे में विश्व विद्यालय से प्राप्त फार्मो को भर कर भेज दें। विश्व विद्यालय के अनुसंधान विभाग का कर्तव्य होगा कि वह विद्यार्थियों के परिवार की योग्यतानुसार छात्र के माता-पिता से या परिवार के अन्य सदस्यों से (जो छात्र से सम्बन्धित हो) शिक्षा शुल्क प्राप्त करें। किसी छात्र के परिवार की खराब स्थिति होने पर शिक्षा शुल्क नहीं लिया जायगा। इस विश्वविद्यालय में प्रवेश करने के बाद उस विद्यार्थी का दूसरे विश्वविद्यालयों से सम्बन्धित स्कूल व कालेजों में प्रवेश नहीं होगा। उसको हरेक तरह से इसी स्कूल व कालेज में पढ़ना जरूरी है । लड़के और लड़कियों का एक साथ पढ़ना जरूरी है। सहशिक्षा अनिवार्य है, उनमें भाई और बहिन का सम्बन्ध जोड़ना होगा। लड़के को पुरुष सम्बन्धी शिक्षा दी जायगी और लड़की को गृहकार्य में निपुण होने के लायक शिक्षा दी जायगी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (E) शिक्षा पूर्ण होने तक उसको छात्र निवास में ही रहना होगा । संरक्षित छात्र के परिवार का कोई भी सदस्य उससे केवल महीने में दो बार भेंट कर सकेगा । लेकिन किसी भी छात्र को बिना आज्ञा के कोई भी वस्तु देना अपराध समझा जायगा । प्रत्येक अध्यापक को उसके परिवार के अनुसार ही वेतन दिया जायेगा | अध्यापक का कर्त्तव्य छात्रों को देश का एक अच्छा नागरिक बनाना है | स्वार्थ को त्याग कर ही इस जिम्मेदार कार्य को किया जा सकता है। छात्र निवास के अतिरिक्त बाहरी छात्र या छात्राओं के पढ़ने का प्रबन्ध भी होगा। लेकिन उनको भी विश्वविद्यालय सम्बन्धी प्रत्येक नियमों का पालन करना पड़ेगा । उनको योग्य नागरिक बनाने के लिये माता पिता को भी ख्याल रखना होगा। इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य केवल देश के लिये अच्छे तथा योग्य नागरिकों को बनाना ही है। शिक्षा विभाग से सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति को स्वार्थ रहित होना चाहिये। उनमें स्वार्थ की भावना बिलकुल नहीं रहनी चाहिये। छात्र की इच्छानुसार ही उसको शिक्षा हो जायेगी । अतिशीघ्र इस शिक्षा को चालू करना ही हमारा कर्तव्य है । चार वर्ष से छोटे बच्चों को शिक्षा विभाग स्वीकार नहीं करेगा। शिक्षा में अवस्था का भी ध्यान रखना होगा । प्रत्येक छात्र को उसकी इच्छानुसार शिक्षा दी जायेगी । इस विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए सम्मेलन समाज के प्रत्येक व्यक्ति से अनुरोध करता है कि आप लोग इसकी स्थापना के वास्ते पूर्ण रूपसे आर्थिक सहयोग प्रदान करेंगे तथा साथ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १० ) ही साथ सरकार से भी इस विश्वविद्यालय की स्थापना के लिये शक्ति भर अनुरोध करेंगे । पुस्तकालय - विभाग इस सम्मेलन के अन्तर्गत एक 'अन्तर्राष्ट्रीय जैन पुस्तकालय' होगा, जिससे मानव मात्र के अन्दर नैतिक, धार्मिक तथा सामाजिक भावनाओं का विकास हो । यह पुस्तकालय एक वृहत्तर पुस्तकालय का रूप ग्रहण करेगा । पुस्तकालय में सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, भौगोलिक, शिक्षा सम्बन्धी, बालोपयोगी तथा अहिंसा सम्बन्धी पुस्तकों को ही रखा जायगा, जिनके द्वारा मानव का कल्याण हो तथा उनसे कुछ शिक्षा प्राप्त की जा सके । प्राचीन तथा वर्तमान कवि या लेखकों द्वारा रचित प्रत्येक पुस्तक को इस पुस्तकालय में स्थान प्राप्त होगा बशर्ते की वह पुस्तक जैनधर्म सम्बन्धी हो । सेवा विभाग सम्मेलन के अन्तर्गत एक सेवा विभाग होगा, जिसका नाम 'अहिंसा सेवा दल' रखा जायेगा । इस विभाग के सदस्य हरेक समय सामाजिक तथा धार्मिक प्रतिष्ठानों पर अपनी सेवायें अर्पित किया करेंगे। जब कभी भी सेवा विभाग के सदस्यों की आवश्यकता होगी, उनकी उपस्थिति आवश्यक है । सेवा विभाग के सदस्यों का कर्तव्य होगा कि प्रत्येक सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा जिस काम में भी उनकी आवश्यकता हो, अपने सफल नियन्त्रण द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन करें । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ). विश्व के प्रत्येक भाग में इस सेवा दल की शाखायें बनायी जायेंगी । इस विभाग का मुख्य कर्तव्य होगा कि अनुशासनपूर्व शान्ति के साथ सामाजिक तथा धार्मिक सेवायें करना । अनुशासन तथा कर्तव्यशील व्यक्तियों को ही इसका सदस्य बनाया जायेगा । राजनैतिक विभाग सम्मेलन के अन्तर्गत एक राजनैतिक विभाग होगा । वर्त्त - मान युग की परिस्थितियों को देखते हुये जैन समाज के कल्याण के वास्ते देश की राजनीति में भी सम्मेलन को प्रवेश करना होगा । वर्त्तमान सरकार जैन समाज के प्रति एकदम उदासीन है । इसका मुख्य कारण संसद में किसी भी जैन सदस्य का प्रतिनिधित्व नहीं है, जो समाज की जटिल समस्याओं को सरकार के सम्मुख उपस्थित करे । समाज की समस्याओं को देखते हुए सम्मेलन को राजनीति में प्रवेश करना होगा । सम्मेलन अधिक से अधिक व्यक्तियों को राजनैतिक कार्यों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करेगा । इस राजनैतिक संगठन का नाम 'अहिंसा' रखा जायेगा । इसके सदस्यों को देश तथा समाज की सत्यता पूर्वक सेवा करनी होगी । स्वार्थ के वशिभूत होकर भाग लेने वाले सदस्य को तुरन्त हटा दिया जायगा । चुनाव में विजयी होने वाले सदस्यों को सम्मेलन के प्रत्येक नियम का ध्यान रखते हुए कार्य करना होगा । समाज की जटिल समस्याओं को देखते हुए ही राजनैतिकविभाग की स्थापना की जायगी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ( १२ ) संगीत - विभाग सम्मेलन के अन्तर्गत एक बृहत सङ्गीत विभाग होगा । इसमें सङ्गीत, नाटक, सिनेमा- फिल्म आदि होंगे जिनकी सहायता से धर्म का प्रचार किया जायेगा । सङ्गीत विभाग प्रत्येक धार्मिक उत्सवों पर अपने सदस्यों की सहायता से सङ्गीत, नाटक आदि का प्रदर्शन करता रहेगा । सङ्गीत विभाग के अन्तर्गत एक नाट्य विभाग होगा, जिसके सदस्य केवल विद्यार्थी ही हो सकेंगे। छात्र की अवस्था अठारह वर्ष तथा छात्रा (बालिका) की अवस्था पन्द्रह वर्ष होगी। इससे अधिक अवस्था वाले किसी भी बालक या बालिका को नाट्य विभाग का सदस्य नहीं बनाया जायेगा । सङ्गीत विभाग के वास्ते सभी स्त्री-पुरुष भाग ले सकेंगे। इसमें अवस्था का प्रतिबन्ध नहीं होगा । हमारे सम्मेलन का उद्देश्य है कि समाज के अन्दर एक ऐसी सङ्गीत मण्डली तैयार की जाय, जो अपने सङ्गीत द्वारा कठोर से कठोर हृदय को पिघला कर भी उसके अन्दर धार्मिक भावना उत्पन्न करे। इस विभाग की सफलता समाज की सफलता समझी जायेगी। इस विभाग की सहायता से हम देश के मानवमात्र के अन्दर धार्मिक भावनाओं का उदय कर सकते हैं। पुरातत्व विभाग सम्मेलन के अन्तर्गत एक बृहत पुरातत्व विभाग होगा । इस विभाग का कर्तव्य होगा कि प्राकृर तथा संस्कृत या अन्य शास्त्रों का पता लगाना, अप्रकाशित शास्त्रों का पता T Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) लगा कर उनको प्रकाशन विभाग के सिपुर्द करना, प्राचीन शीलालेख आदि का पता लगाना। प्राचीन मूर्तियों या खण्डहरों का पता लगाना तथा उनकी रक्षा करना । सभी प्राचीन या नवीन मन्दिरों की देखभाल करना तथा जहां पर मरम्मत की आवश्यकता हो, वहां पर अच्छी प्रकार से मरम्मत करवाना आदि। सञ्चालन-विभाग सम्मेलन के अन्तर्गत एक सञ्चालन-विभाग होगा। इस सञ्चालन विभाग के अन्तर्गत धार्मिक तीर्थ क्षेत्र, मन्दिर, औपधालय, स्कूल, कालेज, पुस्तकालय, सामाजिक संस्थाय आदि हैं जिनका प्रबन्ध या देखरेख की जिम्मेदारी पूर्ण रूपसे सञ्चालन विभाग के अन्तर्गत होगी। मन्दिरों या तीर्थभत्रों की चलअचल सम्पति का प्रबन्ध भी इस विभाग को ही करना पड़ेगा। धार्मिक-त्यौहारों या उत्सवों के अवसर पर सांस्कृतिक कार्यों का प्रबन्ध करना। सम्मेलन के प्रत्येक विभाग के प्रबन्ध की जिम्मेदारी सञ्चालन विभाग के अन्तर्गत होगी। आर्थिक-विभाग सम्मेलन के अन्तर्गत एक आर्थिक या वित्त विभाग होगा। इस विभाग द्वारा वार्षिक बजट कार्यकारिणी समिति के सम्मुख उपस्थित किया जायगा। लेन-देन सम्बन्धी सभी प्रकार के कार्य इस विभाग के अन्तर्गत होंगे। मन्दिरों की चल अचल सम्पत्ति की देखभाल करना, उनके हिसाब का निरीक्षण करना, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) जहां पर धन की आवश्यकता हो, वहां पर धन की सहायता करनो, चन्दा इकट्ठा करना, आय-व्यय का पूर्ण व्यौरा रखना, चन्दे या भाड़े की रकम वसूल करना। कहने का तात्पर्य यह है कि अर्थ सम्बन्धी सम्पूर्ण कार्य इस विभाग द्वारा सम्पन्न होंगे। सदस्य सम्मेलन के सदस्य निम्नलिखित रूप से बनाये जायेगें। जिनको सार्वजनिक समिति के अधिवेशन में भाग लेने का अधिकार होगा। १-साधारण सदस्य २-वार्षिक सदस्य ३-आजोवन या स्थायी सदस्य ४-माननीय सदस्य ... साधारण सदस्य-प्रत्येक साधारण सदस्य जो सम्मेलन के नियमों एवं उद्देश्यों का पालन करते हुए २) दो रुपया सम्मेलन के लिए तथा एक रुपया पुस्तकालय के लिए मासिक देता रहेगा, वही सम्मेलन का साधारण सदस्य बनाया जा सकेगा। . वार्षिक सदस्य -प्रत्येक साधारण सदस्य जो सम्मेलन के नियमों एंव उद्देश्यों का पालन करते हुए दो रुपया सम्मेलन के लिए तथा एक रुपया पुस्तकालय के लिए मासिक लगातार पाँच वर्ष तक नियत समय पर देता रहेगा तथा भविष्य में बार्षिक सदस्य बनना चाहेगा, तो वह ५१) रुपया देकर बार्षिक सदस्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बन सकेगा। प्रत्येक बार्षिक सदस्यके निवास स्थान पर समाचार पत्र भेजा जायगा तथा वह सम्मेलन से सम्बन्धित सभी पुस्तकालयों का उपयोग कर सकेगा। आजीवन या स्थायी सदस्य-प्रत्येक प्रतिष्ठित व्यक्ति, जो सम्मेलनको५०१), १००१)या ५००१)रुपया दानस्वरूप प्रदान कर सहायता करेंगे तथा भविष्य में भी सहायता करते रहेंगे, इस सम्मेलन के आजीवन या स्थायी सदस्य बनाये जायेंगे। आजीवन या स्थायी सदस्यों को समाचार-पत्र, पुस्तकालय आदि का उपयोग करने का अधिकार होगा। माननीय सदस्य-आजीवन या स्थायी सदस्यों में से सात को माननीय सदस्य चुना जायेगा। इनका चुनाव कार्यकारिणी समिति के उपस्थित सदस्यों में से तीन चौथाई सदस्यों की अनुमति होने पर ही किया जा सकेगा। माननीय सदस्यता निःशुल्क होगी। सम्मेलन की दोनों समितियों के अधिवेशन में माननीय सदस्यों को जानेका अधिकार होगा। लेकिन वे सिर्फ अपनी राय ही प्रगट कर सकेंगे ।मत विभाजनमें उनको भाग लेने का कोई भी अधिकार नहीं होगा । सभापति व प्रधान मन्त्री के अधिवेशन का आयोजन नहीं करने पर कार्यकारिणी समिति के बारह सदस्यों की राय पर तीन माननीय सदस्य अपने तथा बारह सदस्यों के हस्ताक्षर सहित कार्यकारिणी समिति की मिटिंग बुला सकेंगे। सम्मेलन की भलाई के लिये माननीय सदस्य को विशेषाधिकार प्राप्त होगा। लेकिन सम्मेलनके नियम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विरुद्ध कार्य करने पर किसी भी माननीय सदस्य को कार्यकारिणी समिति द्वारा हटाया जा सकता है। सम्मेलन के सदस्यों के अधिकार सम्मेलन के सदस्यों के अधिकार निम्नलिखित होंगे :१-पुस्तकालय का उपयोग करना । २-सार्वजनिक समिति के अधिवेशन में भाग लेना (केवल ___ माननीय सदस्य ही कार्यकारिणी समिति के अधिवेशन . में भाग ले सकेंगे। ३–निर्वाचन में भाग लेना ४-समाज एवं देश में देखते हुए अन्याय या अत्याचार की खबर "सूचना विभाग" को देना । -सम्मेलन के सार्वजनिक कार्यों में भाग लेना। व्यवस्था सम्मेलन के कार्यों की व्यवस्था निम्नलिखित समितियों द्वारा होगी : १-कार्यकारिणी समिति २-सार्वजनिक समिति कार्यकारिणी समिति संगठन-सम्मेलन के समस्त कार्यों का संचालन करने के लिये एक कार्यकारिणी समिति होगी, जिसके सदस्यों का निर्वाचन प्रति पाँचवें वर्ष में दिपावली के लगभग हुआ करेगा। पदाधिकारियों सहित कार्यकारिणी समिति के अधिकसे अधिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ___www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) एक सौ एक सदस्य रहेंगे। उनमें से १५ ऐसे सदस्यों को प्रधान मन्त्री सभापति की राय से मनोनीत करेंगे, जो साहित्य, विज्ञान, कला, सामाजिक सेवा, शिक्षा, राजनीतिक, सांस्कृतिक आदि कार्यों में विशेष ज्ञान और अनुभव रखते हैं। शेष सदस्यों का निर्वाचन शैक्षणिक प्रणाली के अनुसार होगा। कार्यकारिणी स मति का सदस्य होने के लिए निम्नलिखित योग्यताओं की आवश्यकता है :(१) वह जैन धर्म को मानने वाला हो, तथा उसकी धार्मिक कार्यों में भाग लेने की इच्छा हो। (२) उसकी अवस्था २५ बर्ष की हो। (३) कार्य कारिणी समिति द्वारा निश्चित की गयी योग्य ताएँ बर्तमान हों। (४) कम से कम माध्यमिक शिक्षा परिषद की परीक्षा पास की हो। इन योग्यताओं को रखने वाला नागरिक ही कार्यकारिणी समिति का सदस्य हो सकेगा । कार्यकारिणी समिति का अधिवेशन महीने में एक बार होना आवश्यक है। निर्णयः-किसी विषय पर भी बर्तमान कार्यकारिणी समिति का मत बाध्यतामूलक अन्तिम निर्णय होगा। यदि किसी खास मौके पर कार्यकारिणी समिति के सदस्य सभा बुलाने को कहे और प्रधान मत्री सभा न बुलाये तो ऐसी अवस्था में बारह कार्यकारिणी समिति के सदस्य बिषय बतलाते हुए लिखित नोटिस प्रधान मन्त्री को देगें। तब प्रधान मंत्री सभा को बुलाने के लिए Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) बाध्य होगें। यदि इतने पर भी प्रधान मंत्री सात दिनों तक सभा बुलाने की सूचना न दे तो वे ही सदस्य दूसरी नोटिस सभापति को देगें। यदि सभापति भी सात दिन के अन्दर सभा बुलाने की सूचना न दे तो वे ही बारहों सदस्य सभा का कारण बतलाते हुये तीन माननीय सदस्यों तथा अपनी सही से सात दिन के भीतर सभा बुला सकेगें। वह सभी नियमानुसार समझी जायेगी, पर उस सभा में समिति के नियम के विरुद्ध कोई भी कार्यवाही नहीं हो सकेगी। इस अवसर पर सभापति तथा प्रधान मन्त्री दोनों की उपस्थिति अनिवार्य है । सभा के अन्दर अनुशासन रखना अत्यावश्यक है । सभापति की अनुमति के बिना कोई भी सदस्य सभा में नहीं बोल सकेगा। किसी विषय पर भी बोलने के लिये सभापति की अनुमति लेना आवश्यक होगा। मतदान द्वारा किये गये निर्णयों की घोषणा सभापति द्वारा की जायेगी। पक्ष और विपक्ष में बराबर मतदान की स्थिति उत्पन्न होने पर सभापति को अपना महत्वपूर्ण मत देने का अधिकार होगा। कार्यकारिणी समिति का यह निर्णय प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के मतदान में स्वीकार होगा। कार्य एवं अधिकार:-कार्यकारिणी समिति के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगे:१. सम्मेलन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नियमादि बनाना तथा उनकी सुविधा के लिए उपममितियों का निर्वाचन करना। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) २. जिस सदस्य से हानि होती प्रतीत होगी अथवा सम्मा वना हो उसका नाम सदस्य श्रेणी से पृथक कर देना। ३. समिति के समस्त कार्यों का सञ्चालन तथा आय-व्यय का प्रबन्ध करना। ४. यदि कोई सदस्य बिना कारण के दो महीने तक अपना चन्दा न दें तो कार्यकारिणी समिति को अधिकार होगा कि वह उसका नाम सदस्य श्रेणी से पृथक कर दें। ५. सम्मेलन के कार्यों का समुचित रूप से सञ्चालन तथा प्रबन्ध करने के लिए अन्य आवश्यक कार्यों को करना। ६. सम्मेलन के हरेक विभाग के सदस्यों का निर्वाचन करना तथा उनको कार्य करने के लिए अधिकार प्रदान करना। ७. प्रत्येक वर्ष के बजट को स्वीकृति प्रदान करना । कार्यकारिणी समिति के पदाधिकारी कार्यकारिणी समिति में निम्नलिखित पदाधिकारी रहेंगे :(१) सभापति (७) प्रकाशन मंत्री (२) उप-सभापति (८) उप-प्रकाशन मंत्री (३) प्रधानमंत्री (8) शिक्षा मंत्री (४) संयुक्त-मंत्री (१०) उप-शिक्षा मंत्री (५) प्रचार मंत्री (११) पुस्तकालय मंत्री (६) उप-प्रचार मंत्री (१२) उप-पुस्तकालय मंत्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०) (१३) सेवा मंत्री (१४) उप-सेवा मंत्री (१५) शासन मंत्री (१६) उप-शासन मंत्री (१७) संगीत मंत्री (१८) उप-संगीत मंत्री उपरोक्त विभागों का सञ्चालन अलग-अलग सदस्यों द्वारा होगा केवल प्रधान मन्त्री ही समस्त विभागों का सञ्चालन कर सकेंगे। इसके अतिरिक्त सभी विभाग के पदाधिकारियों के कार्य एवं निर्वाचन निम्नलिखित प्रकार से होगें। सभापति एवं उप-सभापति (१६) पुरातत्व मंत्री (२०) उप- पुरातत्व मंत्री (२१) सञ्चालन मंत्री (२२) उप-संचालन मंत्री (२३) अर्थ मंत्री (२४) उप- अर्थ मंत्री निर्वाचनः सम्मेलन के नियमानुसार कार्यकारिण समिति का प्रधान सभापति होगा । उसका निर्वाचन कार्यकारिणी समिति की सलाह से प्रधान मन्त्री द्वारा किया जायगा । मतभेद होने पर प्रधान मन्त्री का निर्णय ही मान्य होगा । सभापति या उप-सभापति बनने के लिए उन्हीं योग्यताओं की आवश्यकता है जो सम्मेलन के द्वारा निश्चित की गयी है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat पद त्यागः -- सभापति अपने पद ग्रहण की तिथि से लेकर पाँच वर्ष की अवधि तक अपने पद पर बना रहेगा और तब तक अपने कार्य भार से मुक्त न होगा जब तक कोई निर्वाचित सभापति कार्य भार न ग्रहण कर ले। परन्तु इसी बीच वह किसी कारण वश पद त्याग करना चाहे तो अपने हस्ताक्षर www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१ ) सहित लेख द्वारा उप-सभापति के नाम अपना त्यागपत्र दे सकेगा। ___ स्वेच्छा से पदत्याग करने के अतिरिक्त सभापति को हटाने की भी व्यवस्था की गयी है । वह ऐसी ही परिस्थिति में हटाया जा सकेगा जब कि वह सम्मेलन के नियमों का उल्लंघन करता हुआ उसके नियमों या उद्देश्यों के विरुद्ध कार्य करेगा इन्हीं नियमों के अनुसार उप-मभापति का भी चुनाव होगा। लेकिन उप-सभापति का चुनाव कार्यकारिणी समिति द्वारा सभापति की राय से किया जायगा। उप-सभापति भी किसी कारण वश अपनी इच्छानुसार पदत्याग कर सकेगा। कार्य एवं अधिकार :-सम्मेलन के अनुसार सभापति के निम्नलिखित कार के अधिकार होंगे:१. प्रत्येक अधिवेशन में उपस्थित होकर सभा का सञ्चालन करना। २. अनुचित व नियम विरुद्ध कायम होमे देना। ३. किसी विषय पर सदस्यों का मान बला होने अपना निर्णायक मत देना। Ammam ४. माननीय सदस्यों के आग्रह पर तुरन्त ही सभा का ___आयोजन कर देना। ५. सभा में अनुशासन रखना। ६. सदस्यों को गुटबन्दी नहीं करने देना। ७. बजट के अतिरिक्त आवश्यकता पड़ने पर अधिक खर्च करने की अनुमति प्रधान मन्त्री की राय से प्रदान करना। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) ८. सभापति की अनुपस्थिति में उप-सभापति को उसके कार्यों का सञ्चालन करना होगा। ६. उप-सभापति को सभापति के कार्यों में सहायता प्रदान करने का अधिकार होगा। प्रधान मंत्री एवं संयुक्त मंत्री निर्वाचनः-प्रधान मंत्री ही कार्यकारिणी समिति का वास्तविक प्रधान होगा। इस संस्था का सञ्चालक ही इस सस्था का प्रधान मंत्री समझा जायगा। प्रधान मंत्री का किसी भी हालत में निर्वाचन नहीं होगा। वह इस संस्था का संचालक संयोजक, कार्यकर्ता, अथवा सर्वेसर्वा सब कुछ होगा। इसके अतिरिक्त संयुक्त मंत्री का निर्वाचन करने का अधिकार कार्यकारिणी समिति को रहेगा। संयुक्त मंत्री का निर्वाचन कार्यकारिणी समिति के सदस्यों में से ही किया जायगा। पद त्यागः-प्रधान मंत्री अपने पद ग्रहण की तिथि से लेकर जीवन भर तक अपने पद पर बना रहेगा। परन्तु इसी बीच वह किसी कारणवश पद-त्याग करना चाहे तो अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा संयुक्त मंत्री के नाम अपना त्यागपत्र दे सकेगा। __ स्वेच्छा से पदत्याग करने के अतिरिक्त प्रधान मन्त्री को अपने पद से हटाने के लिए भी व्यवस्था की गयी है। क्योंकि सम्भव है कि भविष्य में वह सम्मेलन के नियमों एवं उद्देश्यों की कोई परवाह न कर आलसी, दुष्ट, पापी तथा अत्याचारी बनकर समाज की ओट में पापाचार करने की कोशिश करे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) ऐसी परिस्थिति में नियमावली का उल्लंघन करने पर प्रधान मंत्री को अपने पद से हटाने के लिए कार्यकारिणी समिति की बैठक होगी। उस समय सभा में प्रधान मन्त्री पर महाभियोग लगाये जायेंगे। अभियोग सिद्ध होने पर सभापति के निर्णयानुसार प्रधान मन्त्री को अपना पद छोड़ना पड़ेगा। इसके पश्चात् कार्य कारिणी समिति को दूसरा प्रधान मन्त्री चुनने का अधिकार होगा। संयुक्त मन्त्री को भी इन तरीकों से पदच्युत किया जा सकता है। संयुक्त मन्त्री पांच वर्ष तक अपने पद पर बना रहेगा। कार्य एवं अधिकार :(१) सम्मेलन के आय-व्यय व हिसाब पर कड़ी नजररखना। (२) माननीय सदस्य के आग्रह को कार्यान्वित करना। (३) सब आवश्यक पत्र व्यवहार अपने निरीक्षण में कराना तथा विभिन्न विभागों के मन्त्रियों के कार्यों की समुचित व्यवस्था करना। (४) कार्यकारिणी तथा सार्वजनिक समिति के अधिवेशन में उपस्थित होकर कार्यक्रम, पत्र रिपोर्ट, तथा आवश्यक प्रस्ता वादि उपस्थित करना। (५) सम्मेलन की वार्षिक रिपोर्ट तैयार करवाना। . (६) सम्मेलन के सभी विभागों के कार्यों की देख-भाल करना। (७) अनुचित एवं नियम विरुद्ध कार्य न होने देना। (८) वार्षिक बजट पेश करना। (९) कार्यकारिणी व सार्वजनिक समिति द्वारा स्वीकृत प्रस्तावों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) को कार्य रूप में परिवर्तित करना । (१०) सम्मेलन के सभी रसीद, चालान, बाउचर, कागज, पत्र व दस्तावेज आदि पर हस्ताक्षर करना । (११) कार्यकारिणी द्वारा स्वीकृत वार्षिक रिपोर्ट व हिसाब को सम्मेलन की ओर से प्रकाशित करवाना | (१२) बैंक के खातों को सम्मेलन की नियमावली के अनुसार सभ्चालित करना | बैंक खाता सम्मेलन के नाम से ही खोला जायगा । बैंक से प्रधान मन्त्री तथा अर्थ मन्त्री की सही होने पर ही रुपया निकाला जा सकेगा । (१३) सम्मेलन के कार्यों के लिये मन्त्रियों द्वारा प्रस्तावित वजट कार्यकारिणी समिति में व आवश्यकतानुसार सार्वजनिक समिति में पास करवाना । (१४) संयुक्त मन्त्री को प्रधान मन्त्री के प्रत्येक कार्य में सहायता करने तथा उनकी अनुपस्थिति में उनके समस्त कार्यों का सञ्चालन करने का अधिकार होगा । प्रचार मन्त्री निर्वाचन :- सम्मेलन के संविधान के अनुसार कार्यकारिणी समिति के प्रचार विभाग का प्रधान प्रचार मन्त्री होगा । उसका निर्वाचन प्रधान मन्त्री की सलाह से कार्य - कारिणी समिति द्वारा किया जायगा । पद त्याग : - प्रचार मन्त्री अपने पद ग्रहण की तिथि से लेकर पांच वर्ष तक अपने पद पर बना रहेगा और तब तक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) अपने कार्य भार से मुक्त नहीं होगा, अब तक कोई निर्वाचित प्रचार मन्त्री कार्य-भार न ग्रहण कर ले। परन्तु इसी बीच वह किसी कारणवश पद त्याग करना चाहे तो अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा प्रधान मन्त्री के नाम अपना त्याग पत्र दे सकेगा। __ स्वेच्छा से पद त्याग करने के अतिरिक्त प्रचार मन्त्री को अपने पद से हटाने की भी व्यवस्था की गयी है। वह ऐसी ही परिस्थिति में हटाया जायगा, जब कि वह सम्मेलन के निवनी का उल्लंघन करता हुआ उसके संविधान के प्रतिकूल कार्ण करेगा। कार्य एवं अधिकारः-सम्मेलन के संविधान के अनुसार प्रचार मन्त्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगे:(१) धार्मिक साहित्य इकट्ठा करके ट्रैक्टस् व पत्र-पत्रिकाओं या अन्य किसी तरीके से अहिंसा का प्रचार करवाना । (२) बड़े-बड़े धार्मिक त्यौहारों, जलसों तथा मेलों पर घूम-घूम ____ कर अहिंसा एवं जैन धर्म का प्रचार करवाना। (३) धार्मिक फिल्मों को प्रधान मंत्री की राय से तैयार कराना तथा उनके द्वारा देश-विदेश में प्रचार करवाना । (४) प्रचार विभाग के समस्त आय व्यय का हिसाब रखना तथा वार्षिक बजट तैयार करवाना। (२) अपने विभाग की रिपोर्ट प्रधान मंत्री के समक्ष उपस्थित करते रहना। (६) समग्र विश्व में अहिंसा एवं जैन धर्म का प्रचार करवाना। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) अपने प्रचार द्वारा अजैनों को जैन धर्म की ओर उन्मुख करना तथा उनकी इच्छानुसार उनको जैनधर्म में दीक्षित करने की प्रधान मंत्री से अनुमति लेना । (८) समस्त विश्व में अपने प्रचारकों को भेजना तथा समय समय पर विश्व के प्राणियों को अहिंसा का संदेश देते ' रहना। उप-प्रचार मंत्री, निर्वाचन एवं पद त्यागः - सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही उप-प्रचार मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा इसी संविधान के अनुसार उप-प्रचार मन्त्री पद त्याग भी कर सकेगा। कार्य एवं अधिकार:-सम्मेलन के संविधान के अनुसार उप प्रचार मन्त्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगे :(१) प्रचार मन्त्री की अनुपस्थिति में प्रचार विभाग से सम्बन्धित सभी कार्यों का संचालन करना। (२) प्रचार मन्त्री के कार्यों में सहायता प्रदान करना। प्रकाशन मन्त्री निर्वाचनएवं पदत्यागः-सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही प्रकाशन मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा इसी संविधान के अनुसार प्रकाशन मंत्री पद त्याग भी कर सकेगा। कार्य एवं अधिकारः-सम्मेलन के संविधान के अनुसार प्रकाशन मन्त्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगेः(१) अहिंसा और जैन धर्म से सम्बन्धित सभी प्रकारकी पुस्तकों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७ ) का प्रकाशन करवाना। (२) छोटे बड़े सभी प्रकार के द्रक्ट्स प्रकाशित करवाना। (३) अपने विभाग की रिपोर्ट प्रधान मन्त्री के समक्ष उपस्थित करते रहना। (४) वार्षिक बजट पास करवाना। (५) आय-व्यय का हिसाब रखना तथा उस हिसाब को अर्थ विभाग को सौंप देना। (६) सम्मेलन से सम्बन्धित सभी विभागों के प्रकाशन का कार्य करवाना । (७) प्रेस विभाग एवं समाचार पत्र विभाग के कार्यों की देख भाल करना। (८) प्रेस विभाग के कार्यों का निरन्तर निरीक्षण करते रहना। (8) समयानुसार समाचार पत्र का प्रकाशन करवाना। (१०) सभी भाषाओं में ट्रैक्ट्स व पुस्तकें प्रकाशित करवाना। उप-प्रकाशन मन्त्री निर्वाचन एवं पदत्यागः-सम्मेलन के सविधान के अनुसार ही उप-प्रकाशन मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा इसी संविधान के अनुसार उप-प्रकाशन मन्त्री पदत्याग भी कर सकेगा। कार्य एवं अधिकारः-सम्मेलन के संविधान के अनुसार उप प्रकाशन मन्त्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगे:-- १. प्रकाशन मन्त्री की अनुपस्थिति में सम्मेलन के प्रकाशन _ विभाग से सम्बन्धित समस्त कार्यों का सञ्चालन करना । २. प्रकाशन मन्त्री के कार्यों में सहायता प्रदान करना । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) शिक्षा मन्त्री निर्वाचन एवं पदस्यागः सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही शिक्षा मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा इसी संविधान के अनुसार शिक्षा मन्त्री पद त्याग भी कर सकेगा । कार्य एवं अधिकारः सम्मेलन के संविधान के अनुसार शिक्षा मन्त्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगें:(१) शिक्षा सम्बन्धी कार्यक्रम को कार्यकारिणी समिति द्वारा स्वीकृत कराना तथा उसको स्वीकृति के पश्चात् कार्यरूप में परिवर्तित करना | (२) शिक्षा विभाग का वार्षिक बजट तैयार करवा कर प्रधान मन्त्री की राय के अनुसार कार्यकारिणी समिति में उपस्थित करना । (३) बजट के अनुसार खर्च करना । (४) विश्वविद्यालय के समस्त कार्यों की देखभाल करना तथा उससे सम्बन्धित स्कूलों तथा कालेजों का समय-समय पर निरीक्षण करते रहना । (५) योग्य कर्मचारियों की नियुक्ति करना । (६) बार्षिक रिपोर्ट तैयार करवा कर कार्यकारिणी समिति में प्रस्तुत करना । (७) आदर्श शिक्षा प्रणाली की स्थापना करना । (८) जैनधर्म तथा अहिंसा धर्म सम्बन्धी शिक्षा के लिये अच्छी पुस्तकों का संग्रह करवाना । WOR Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६ ] (6) ऐसी पाठ्य पुस्तकों को रखना, जिससे कि छात्र के अन्दर धार्मिक भावना का अंश. जीवन भर रहे तथा देश का वह एक. सञ्चा नागरिक बन सके । (१०) विश्व के अन्य विश्वविद्यालयों से सम्बन्ध स्थापित करना तथा अहिंसा-विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम को प्रस्तुतः कर उनको स्वीकृत करवाने की कोशिश करना। (११). प्रत्येक कालेज वस्कूल में जो अहिंसा विश्वविद्यालय से सम्बन्धित हो, छात्राकासा की स्थापना के लिये कार्यक्रम प्रस्तुतः कर स्वीकृत करवाना। (१२) छात्रावास के लिये नियमावली बनाकर कार्यकारिणी समितिद्वारा स्वीकृत करवाना। उप-शिक्षा मन्त्री निर्वाचन एवं पदत्याग:-सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही उप-शिक्षा मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा इसी संविधान के अनुसार उप-शिक्षा मन्त्री पद त्याग भी कर सकेगा। कार्य एवं अधिकार सम्मेलन के संविधान के अनुसार उप-शिक्षा मन्त्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगे:(१) शिक्षा मन्त्री की अनुपस्थिति में सम्मेलन के शिक्षा विभाग से सम्बन्धित समस्त कार्यों का संचालन करना । (२) शिक्षा मन्त्री के कार्यों में सहायता प्रदान करना। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) पुस्तकालय-मन्त्री निर्वाचन एवं पदत्यागः-सम्मेलन के संविधान के अनुसार हो पुस्तकालय मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा इसी संविधान के अनुसार शिक्षा मन्त्री पदत्याग भी कर सकेगा। .. - कार्य एवं अधिकार -सम्मेलन के संविधान के अनुसार पुस्तकालय मंत्री के कार्य एवं अधिकार निम्नलिखित होंगेः(१) पुस्तकालय का समस्त प्रबन्ध अपनी देख रेख में करना । (२) पुस्तकों तथा पत्रिकाओं की देख रेख करना । (३ लेन-देन व पुस्तकालय का चन्दा वसुलकर समस्त हिसाब रखना। (१) बार्षिक रिपोर्ट तथा बार्षिक बजट तैयार करवा कर ... कार्यकारिणी समिति के समक्ष प्रस्तुत करना । (५) बजट के अनुसार ही खर्च करना । । (६) सम्मेलन से सम्बधित दूसरे पुस्तकालयों का निरीक्षण " करना तथा आवश्यकता पड़ने पर कार्यकारिणी समिति की अनुमति से आर्थिक सहयोग प्रदान करना । (५) पुस्तकों की सुरक्षा का पूर्ण ध्यान रखना ।। (८) आय-व्यय सम्बन्धी हिसाब तैयार करवा कर अर्थ विभाग को सौंप देना। - उप-पुस्तकालय मंत्री निर्वाचन एवं पदत्याग- सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही उप-पुस्तकालय मंत्री का निर्वाचन होगा, तथा इसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) संविधान के अनुसार उप- पुस्तकालय मंत्री पद त्याग भी कर सकेगा । कार्य एवं अधिकार सम्मेलन के संविधान के अनुसार उप- पुस्तकालय मंत्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होगे : : (१) पुस्तकालय मंत्री को अनुपस्थिति में सम्मेलन के पुस्तकालय विभाग से सम्बन्धित समस्त कार्यों का संचालन करना । (२) पुस्तकालय मंत्री के कार्यो में सहायता प्रदान करना । सेवा-मंत्री निर्वाचन एवं पदत्याग सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही सेवामंत्री का निर्वाचन होगा तथा इसो संविधान के अनुसार सेवा मंत्री पदत्याग भी कर सकेगा । कार्य एवं अधिकार सम्मेलन के संविधान के अनुसार सेवा मंत्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होगे : (१) सेवा विभाग के समस्त कार्यों का सभ्चालन व प्रबन्ध करना । (२) अहिंसा सेवादल के स्वयंसेवकों का सगंठन कर सब तरह की सामाजिक, धार्मिक, लौकिक व राजनैतिक सेवा करवना । (३) सम्मेलन से सम्बन्धित सभी विभागों की आवश्यकता के समय सहायता करना । ४) जुलुस आदि का सवालन पूर्ण नियन्त्रण के साथ अपनी देखरेख में स्वयंसेवकों द्वारा करवाना । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) (५) अहिंसा सेवा दल के सदस्यों को पूर्ण रूप से सेवा सम्बन्धी शिक्षा देना तथा उनको अनुशासन के साथ योग्य नागरिक बनाना। (६) वार्षिक बजट तथा बार्षिक रिपोर्ट तैयार करवाकर कार्य कारिणी समिति के समक्ष उपस्थित करना । (७) वार्षिक बजट के अनुसार ही खर्च करना । (८) सम्मेलन से सम्बन्धित दूसरे सेवा संगठनों का निरीक्षण करना तथा आवश्यकतानुसार उनके संगठनों में परिवर्तन करवाना () धार्मिक,राजनैतिक, सांस्कृतिक तथा वार्षिक अधिवेशन या उत्सवों के अवसर पर स्वयंसेवकों के कार्यों का सुसंगठित रूप से बँटवारा करना जिससे किसी भी कार्यक्रम को सफलतापूर्वक मनाया जा सके। (१०) धार्मिक त्योहारों के अवसर पर नागरिकों का पथ प्रदर्शन करना तथा नागरिकों की हरेक प्रकार से सहायता करना। उप सेवा मंगी निर्वाचन एवं पद त्याग-सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही उप-सेवा मंत्री का निर्वाचन होगा, तथा इसी संविधान के अनुसार उप-सेवा मंत्री पद त्याग भी कर सकेगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३ ) कार्य एवं अधिकार :-सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही उपसेवा मन्त्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगे:(१) सेवो मन्त्री की अनुपस्थिति में सम्मेलन के सेवा विभाग से ___ सम्बन्धित समस्त कार्यों का सञ्चालन करना। (२) सेवा मन्त्री के कार्यों में सहायता प्रदान करना । शासन मन्त्री निर्वाचन एवं पद त्याग :-सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही शासन मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा इसी संवि-. धान के अनुसार शासन मन्त्री पद त्याग भी कर सकेगा। काय एवं अधिकार :-सम्मेलन के संविधान के अनुसार शासन मन्त्री के कार्य एवं अधिकार निम्नलिखित होंगे:(१) राजनीति सम्बन्धी सभी कार्यो का सञ्चालन करना। (२) सदस्यों का निर्वाचन करना तथा चुनाव में बिजयी होने के लिये सदस्यों द्वारा प्रचार कार्य करवाना। (३) सदस्यों को गुटबन्दी नहीं करने देना। (४) राजनीति संबंधी सभी प्रकार की आवश्यक सूचनाओं से प्रधान मन्त्री को अवगत करना। (५) संसद सदस्यों के साथ सम्बन्ध रखना, जो चुनाव में विजयी होकर सम्मेलन की ओर से देश का सञ्चालन करेंगे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) संसद सदस्यों को स्वतन्त्र विचार प्रगट करने की अनुमति प्रदान करना तथा जिस बात से देश का कल्याण हो उस बात की संसद सदस्यों को विरोध नहीं करने का आदेश देना। . .. (७) चुनाब में अधिकाधिक सदस्यों को विजयी कराने का प्रयत्न करना। (८) दूसरी राजनीतिक पार्टियों की नीति से अलग रहने की ___कोशिश करना तथा अपनी स्वतन्त्र नीति प्रधान मंत्री की राय से निर्धारित करना। ..... (8) वार्षिक रिपोर्ट तथा वार्षिक वजट पेश करना । (१०) अपने विभाग से सम्बन्धित जैन धर्म सम्बन्धी प्रश्नों का - हल करना। (११) योग्य कर्मचारियों की नियुक्ति करना। . (१२) आय-व्यय सम्बन्धी हिसाब तैयार करवाकर अर्थ विभाग को सौंप देना। ... उप शासन मन्त्री निर्वाचन एवं पद त्याग :-सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही उप शासन मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा इसी संविधान के अनुसार ही उप शासन मन्त्री पद त्याग भी कर सकेगा। - कार्य एवं अधिकार :-सम्मेलन के संविधान के अनुसार उप-शासन मन्त्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) शासन मन्त्री की अनुपस्थिति में सम्मेलन के शासन विभाग से सम्बन्धित समस्त कार्यों का सञ्चालन करना । (२) शासन मन्त्री के कार्यों में सहायता प्रदान करना । संगीत मन्त्री - निर्वाचन एवं पद त्याग :-सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही संगीत मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा इसी संविधान के अनुसार संगीत मन्त्री पद त्याग भी कर सकेगा। . कार्य एवं अधिकार :-सम्मेलन के संविधान के अनुसार संगीत मन्त्री के कार्य एवं अधिकार निम्नलिखित होंगे:(१) संगीत विभाग से सम्बन्धित सभी कार्यो का सञ्चालन करना। (२) संगीत मण्डली द्वारा प्रचार कार्य में सहायता देना। (३) आधुनिक तथा प्राचीन संगीत की सहायता से उच्च कोटि - के संगीत तैयार करवाना। (४) बच्चों को संगीत शिक्षा देने की व्यवस्था करना । .. (५) धार्मिक तथा सामाजिक उत्सवों पर संगीत द्वारा धर्म प्रचार करवाना। (६) सम्मेलन से सम्बन्धित अन्य संगीत मण्डलियों के कार्यो * की देख भाल करना तथा आवश्यकता के समय सहायता करना ।। (७) आदर्श नाटक उपस्थित कर समाज के प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर धार्मिक भावना को प्रोत्साहित करना। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) अपनी माट्य तथा संगीत मण्डली द्वारा विदेशो में भी धर्म प्रचार करवाना। (६) प्रत्येक सांस्कृतिक कार्यक्रमों को सफलता के साथ सञ्चा लित करना। (१०) बार्षिक रिपोर्ट तथा वार्षिक बजट तैयार करवाकर कार्य कारिणी समिति के समक्ष प्रस्तुत करना। (११) बजट के अनुसार ही खर्च करना। (१२) उच्च कोटि के संगीत व नाटक तथा अन्य बिषय जो इस विभाग से सम्बन्धित हो, लिखवाकर प्रकाशन विभाग को सौंप देना। (१३) आय व्यय का हिसाब तैयार करवा कर अर्थ विभाग को · सौंप देना। उप संगीत मन्त्री निर्वाचन एवं पद त्याग :-सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही उप संगीत मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा उसी संविधान के अनुसार उप संगीत मन्त्री पद त्याग भी कर सकेगा। कार्य एवं अधिकार :-सम्मेलन के संविधान के अनुसारउप संगीत मन्त्रीके निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगे:(१) संगीत मन्त्री की अनुपस्थिति में संगीत विभाग से सम्ब धित सभी कार्यों की सञ्चालन करना। (२) संगीत मन्त्री की बावश्यकता के समय सहायता करना। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७ ) पुरातत्व मन्त्री निर्वाचन एवं पद त्याग : - सम्मेलन के अनुसार ही पुरातत्व मन्त्री का निर्वाचन होगा धान के अनुसार पुरातत्व मन्त्री पद त्याग भी कार्य एवं अधिकार :- सम्मेलन के संविधान के अनुसार पुरातत्व मन्त्रीके निम्नलिखित कार्य्य एवं अधिकार होंगे (१) पुरातत्व विभाग से सम्बन्धित सभी कार्यो का सञ्चालन कर सकेगा । : संबिधान के तथा इसी संबि करना । (२) समाज की सभी बर्तमान तथा प्राचीन बस्तुओं की रक्षा का प्रबन्ध करना । (३) प्राचीन शास्त्र, खण्डहर मूर्तियों एवं शिला लेखों आदि का अनुसन्धान करवाना । (४) प्राचीन वस्तुओं का (जो अनुसन्धान करने के पश्चात् प्राप्त हुयी है) उचित स्थान पर भिजवाने का प्रबन्ध करना तथा उनकी रक्षा करना । (५) अप्रकाशित शास्त्रों का पता लगाकर प्रकाशन विभाग को सौंप देना । (६) जैन समाज से सम्बन्धित, मन्दिरों, पुस्तकालयों, संस्थाओं धर्मशालाओं, औषधालायों, कालेजों, विद्यालयों, आदि जो भी सम्मेलन के अन्तर्गत सम्बन्धित हैं, उनकी मरम्मत, रक्षा, प्रबन्ध तथा अन्य कार्यो का (जो पुरातत्व विभाग से सम्बन्धित हो ) सभ्वालन करना । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८) (७) वार्षिक रिपोर्ट तथा वार्षिक बजट तैयार करवा कर कार्य : कारिणी समिति के समक्ष प्रस्तुत करना । (८) बजट के अनुसार ही खर्च करना । (a) आय व्यय का हिसाब तैयार करवा कर अर्थ विभाग को सौंप देना । उप पुरातत्व मन्त्री निर्वाचन एवं पदत्याग :अनुसार ही उप पुरातत्व मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा इसी संविधान के अनुसार उप पुरातत्व मन्त्री पद त्याग भी कर air | कार्य एवं अधिकार : सम्मेलन के संविधान के अनुसार उप- पुरातत्व मन्त्रीके निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगे : - - - सम्मेलन के संविधान के (१) पुरातत्व मंत्री की अनुपस्थितिमें पुरातत्व विभाग से सम्बसभी कार्यों का सभ्वालन करना । (२) पुरातत्व मन्त्री के कार्यों में समय-समय पर सहायता करना । सञ्चालन मंत्री སྐ་་ निर्वाचन एवं पदत्याग :- सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही सञ्चालन मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा इसी संवि 'धान' के अनुसार सभ्चालन मन्त्री पद त्याग भी कर सकेगा । 'कार्य एवं अधिकार : सम्मेलन के संविधान के अनुसार संचालन मन्त्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगे : 2 ·-- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (( ही ) (१) सम्मेलन के समस्त विभागों के कार्यो का प्रबन्ध करना । (२) सम्मेलन की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति करना । (३) आवश्यकता के समय सम्मेलन के किसी भी विभाग की सहायता के लिये प्रधान मन्त्री को सूचित करना । (४) समस्त तीर्थ स्थानों, औषधालयों, धर्मशालाओं आदि की आवश्यकताओं की पूर्ति करना । (५) उत्सव, त्यौहार, जुलुस आदि के कार्यों का प्रबन्ध करना । (६) योग्य कर्मचारियों की नियुक्ति करना । (७) वार्षिक बजट एवं वार्षिक रिपोर्ट तैयार करवाकर कार्य कारिणी समिति के समक्ष प्रस्तुत करना । ( ८ ) आय व्यय का हिसाब तैयार करवा कर अर्थ विभाग को सौंप देना । उप संचालन मन्त्री निर्वाचन एवं पद त्याग :- सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही उप संचालन मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा इसी संविधान के अनुसार उप-संचालन मन्त्री पद त्याग भी कर सकेगा । कार्य एवं अधिकार : सम्मेलन के संविधान के अनुसार उपसंचालन मन्त्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगे : :- 17 (१) सवालन मन्त्री की अनुपस्थिति में सम्मेलन के सभ्वालन विभाग से सम्बन्धित समस्त कार्यों का प्रबन्ध करना । }, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०). (२) सञ्चालन मन्त्री के कार्यो में सहायता प्रदान करना। अर्थ मन्त्री निर्वाचन एवं पद त्याग :-सम्मेलन के संविधान के अनुसार ही अर्थ मन्त्री का निर्वाचन होगा तथा इसी संविधान के अनुसार अर्थ मन्त्री पद त्याग भी कर सकेगा। कार्य एवं अधिकार :-सम्मेलन के संविधान के अनुसार अर्थ मन्त्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगे:(१) सम्मेलन के समस्त विभागों का अर्थ सम्बन्धी सञ्चालन करना। (२) समस्त विभागों के आय व्यय का हिसाब रखना। (३) आवश्यकता के समय समाज के गणमान्य व्यक्तियों से चन्दा इकट्ठा करना। (४) कोषाध्यक्ष एवं हिसाब परीक्षक की नियुक्ति करना तथा उनके कार्यों की देख भाल करना। (५) सम्मेलन से सम्बन्धित सभी चल-अचल सम्पत्ति के किरायों, लाभांश, व्याज, चन्दा, दान, भेंट, आय ( नगद अथवा वस्तु रूप में ) आदि को वसुल करना । (६) सम्मेलन के आवश्यकत नुसार या स्वीकृत बजट के अनु सार ( जो कार्य कारिणी समिति द्वारा पास किया गया है) सम्मेलन के समस्त विभागों के मन्त्रियों के खर्च के वास्ते रूपया देना तथा उसका हिसाब रखना। . (७) वार्षिक बजट एवं वार्षिक रिपोर्ट तैयार करवा कर प्रधान मन्त्री को सौंप देना। . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४१ ) (८) बैंक के खातों को सम्मेलन के संविधान के अनुसार सवा लित करना । (६) हिसाब परीक्षक द्वारा सम्मेलन के आय-व्यय की मांच : करवाना । -उप अर्थ मन्त्री निर्वाचन एवं पद त्याग : – सम्मेलन के सविधान के अनुसार ही उप- अर्थ मन्त्री को निर्वाचन होगा तथा इसी संविधान के अनुसार उप- अर्थ मन्त्री पद त्याग भी कर सकेगा । कार्य एवं अधिकार :- सम्मेलन के संविधान के अनुसार उप- अर्थ मन्त्री के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार होंगे:(१) अर्थ मन्त्री की अनुपस्थिति में अर्थ विभाग से संम्बन्धित मस्त कार्यों का संचालन करना । (२) अर्थ मन्त्री के कार्यो में सहायता प्रदान करना । सार्वजनिक समिति सम्मेलन के संविधान के अनुसार सार्वजनिक समिति का अधिवेशन समय समय पर हुआ करेगा । सार्वजनिक समिति का अधिवेशन वर्ष में एक बार होना अत्यावश्यक है । सावजनिक समिति में उन्हीं सदस्यों को मत देने का अधिकार होगा जो सम्मेलन के साधारण सदस्य, वार्षिक सदस्य, आजीवन व स्थाई सदस्य तथा माननीय सदस्य होंगे। इस समिति में मत देने के लिये नि शुल्क सदस्यता की भी व्यवस्था Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 42 ) कीगई है जिनकी संख्या 25 होगी। इसके अतिरिक्त देशके प्रत्येक नागरिक को सार्वजनिक समिति के अधिवेशन में भाग लेने का अधिकार होगा। इस प्रकार के सदस्व देवल अपनी राय हो दे सकेगे, लेकिन मत देने का अधिकार इन सदस्यों को नहीं होगा। कार्य कारिणी समिति का उप-सभापति ही सार्वजनिक समिति का सभापति होगा / उप-सभापति सार्वजनिक समिति के सदस्यों में से ही सभापति की राय से चुना जायगा। सम्मेलन के संस्थापको के अधिकार एवं कर्तव्य - (2) निर्वाचित कार्यकारणी ममिति के कार्यों की समय . समय पर देख भाल करते रहना। (2) निर्वाचित कार्यकारणी समिति को विघटित करने का अधिकार। अगर प्रधान मंत्री एवं सभापति कार्यकारणी समिति के अन्दर फैले हुए भ्रष्टाचार या स्वार्थ की भावनाओं को समाप्त करने में अपने को असमर्थ पायेंगे तथा स्वार्थ की भावना से समाज को किसी प्रकार का नुकसान होगा तो ऐसी हालत में संस्थापकों की ओर से कार्यकारिणी समिति को विघटित किया जा सकेगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com