Book Title: Pandav Charitram yane Jain Mahabharat
Author(s): Kalpyashsuri
Publisher: Jiravala Parshwanath 24 Tirthankar Trust

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तुत्यष्टकम् चंद्रांशुना शुभ मनोज्ञ मूर्तिः, शंखेशपार्श्वस्य विनिर्मितेव । यत्पूजकः मोक्षपदं लभन्ते, तस्माच्च सा कामगवी वरिष्ठा ॥ १ ॥ संसार लीलां मनसा विमुच्य, कंदर्प माया विजिता त्वयैव । निर्वाण पुर्याः पथ दर्शकस्त्वम्, त्वां नौमि शंखेश्वरपार्श्व ! नित्यम् ॥ २ ॥ श्रुत्वात्र माहात्म्य मनुत्तमं ते, संसार दुःखात् खलु मोचनाय । आगत्य लोका स्तव मंदिरे त्वाम्, शंखेशपार्श्व ! प्रणमन्ति भक्त्या ॥ ३ ॥ सौम्याति सौम्यं सित. वर्ण युक्तं, दृष्ट्वाननं चंद्रमसोऽधिकं ते । स वीडया किं नभसीव चंद्रः, यात्तस्तु शंखेश्वर पार्श्वनाथ ! ॥ ४ ॥ सिद्धोऽसि बुद्धोऽसि निरंजनोऽसि, धन्योऽसि मुक्तोऽसि जिनेश्वरोऽसि। ब्रह्मा विधाता त्वमनंग शत्रुः रव्यातोऽसि शंखेश्वरपार्श्व ! लोके ॥ ५ ॥ : वसंततिलका : पिता त्वमेव सुखदा जननी त्वमेव, त्राता त्वमेव दिनबन्धुरसि त्वमेव । वात्सल्य नीरधिरसि त्वमुपासनीयः, शंखेशपार्श्व ! भवसागर नौ स्त्वमेव ॥ ६ ॥ शंखेश्वरस्थ मुवि विश्रुतपार्श्वनाथ ! हृद्युल्लसन्ति मनुजा स्तव दर्शनेन । डिभ्मो यथा विमलचंद्रविलोकनेन, प्राप्नोति हर्षमतुलं हृदये विशुद्धे ॥ ७ ॥ यस्याभिधां मनसि ये मनुजाः स्मरन्ति, नो रोग शोक भय निर्बलता प्रयान्ति। ते चाप्नुवन्त्यनुपमं शिवसौरव्यधाम, शंखेशपार्श्वमनिशं प्रणमाम्यहं तम् ॥ ८ ॥ आत्मांबुजं विमलकृत् शिवलब्धिदं च, ये स्थूलभद्र दमिदं शुभ विक्रमेण ।। स्तोत्रं तु 'कल्पयशसा' रचितं पठन्ति, शंखेशपार्श्व ! तव ते शिवशं लभन्ते ॥९॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 438