Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीपञ्चव.
३ वयठवणा
॥ २६७ ॥
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अंगीक साफलं तत्ता अ परो परोवगारोऽवि । सुद्धस्स हवइ एवं पायं सुहसीससंताणो ॥ ६९२ ॥ इअ निकलंकमग्गाणुसेवणं होइ सुद्धमग्गस्स । जम्मंतरेऽवि कारणमओ अ निअमेण मोक्खोति ॥ ६९३ ॥ एवं गुरुकुलवासी परमपयनिबंधणं जओ तेणं । तन्भवसिद्धीएहिवि गोअमपमुहेहिं आयरिओ ॥ ६९४ ॥ ता एअमायरिज्जा चइऊण निअं कुलं कुलपसूओ । इहरा उभयच्चाओ सो उण नियमा अणत्थफलो ॥ ६९५॥ दारं । गुरुपरिवारो गच्छ तत्थ वसंताण निज्जरा विउला । विणयाओ तह सारणमाईहिं न दोसपडिवत्ती ॥ ६९६ ॥ केसिंचि विणकरणं अन्नेसिं कारणं अइपसत्थं । नासंतकुसलजोए सारणमवि होइ एमेव ॥ ६९७ ॥ एमेव य विष्णे अघिपवित्तीऍ वारणं एत्थं । अहिअयरे किच्चमि अ चोअणमिह सपरफलसिद्धी ॥ ६९८॥ footoofarare जोगम्मि तहिं तहिं पयहंतो । निअमेण गच्छवासी असंगपयसाहगो भणिओ ॥ ६९९ ॥ सारणमा वित्तं गच्छपिह्न गुणगणेहिं परिहीणं । परिचत्तणावग्गो चहल तं सुत्तविहिणा उ ॥ ७०० ॥ सीसो सज्झिलओ वा गणिवओ वा न सोग्गई नेइ । जे तत्थ नाणदंसणचरणा ते सुग्गईमग्गो ॥ ७०१ ॥ नणु गुरुकुलवासम्मी जायइ नियमेण गच्छवासो उ । जम्हा गुरुपरिवारो गच्छोत्ति निदंसिअं पुत्रिं ॥ ७०२|| सचमिणं तंमज्झे तदेगलद्धीऍ तदुचिअकमेणं । जह होज्ज तस्स हेऊ वसिज्ज तह खावणत्थमिणं ॥ ७०३ ॥ मोण मिहुवारं अण्णोऽण्णगुणाइ भावसंवद्धं । छत्त (न) मढछततुल्लो वासो उ ण गच्छवासोत्ति ॥ ७०४ ॥ एवं सहाईसुवि जोइजा ओघसुद्धभावेऽवि । सह थेरदिन्नसंधारगाह भोगेण साफलं ॥ ७०५ ॥ दारं ॥
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गुरुकुले गच्छे वासः
॥ २६७॥
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