Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 626
________________ कान्दर्षि श्रीपञ्चव. ३ गणा क्याद्या भावनाः गुण्णा ॥३०॥ तिविहं होइ णिमित्तं तीए पडप्पण्ण णागयं चेव । एत्थ सुभासुभअं अहिगरणेतर विभासाए॥१६४७॥ एयाणि गारवट्ठा कुणमाणो आभिओगिअं बंधे। बीअंगारवरहिओ कुवइ आराह उच्चं च ॥१६४८॥ दारं॥ अणुबद्धबुग्गहोच्चिअ संतत्ततवो णिमित्तमाएसी। णिकिव निराणुकंपो आसुरिअंभावणं कुणइ॥१६४९॥ णिचं विग्गहसीलो काऊण यणाणुतप्पई पच्छा।णय खामिओ पसीअइ अवराहीणं दुविण्हंपि॥१६५०॥ दारं। आहारउवहि सिज्जासु जस्स भावो उ निच्चसंसत्तो। भावोवहओ कुणइ अ तवोवहाणं तयट्ठाए ॥ १६५१॥ तिविहं हवइ निमित्तं एकिकं छविहं तु विण्णे। अभिमाणाभिनिवेसावागरि आसुरं कुणइ ॥१६५२॥ दारं। चंकमणाईसत्तो सुणिक्कियो थावराइसत्तेसुं। काउं व णाणुतप्पइ एरिसओ णिकिवो होइ ॥१६५३ ॥ दारं॥ जो उ परं कंपंतं दहण ण कंपए कढिणभावो । एसो उणिरणुकंपो पण्णत्तो वीअरागेहिं ॥१६५४ ॥ दारं ॥ उम्मग्गदेसओमग्गदूसओमग्गविप्पडीवत्ती।मोहेण य मोहित्तासम्मोहं भावणं कुणइ ॥१६५५॥ पडिदार॥ नाणाइ अ दृसिंतो तविवरीअं तु उद्दिसइ मग्गं । उम्मग्गदेसओ एस होइ अहिओ असपरेसिं ॥१६५६॥ णाणाइ तिविहमग्गं दूसइ जोजे अमग्गपडिवण्णे। अबुहोजाईए खलु भण्णइ सो मग्गदूसोत्ति॥१६५७॥दारं॥ जो पुण तमेव मग्गं दृसिउं पंडिओ सतकाए । उम्मग्गं पडिवज्जइ विप्पडिवन्नेस मग्गस्स ॥ १६५८॥ दारं ॥ तह २ उवयमइओ मुज्झइ णाणचरणंतरालेसुं । इड्डीओ अ बहुविहा द8 जत्तो तओ मोहो ॥ १६५९॥ जो पुण मोहेइ परं सम्भावेणं च कइअवेणं वा । समयंतरम्मि सो पुण मोहित्ता घेप्पइ सऽणेणं ॥१६६०॥ ॥३०३॥ Jan Education in For Private & Personal use only G w w.jainelibrary.org

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