Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 585
________________ दवे भावे अ तहा सुद्धा भूमी पएसऽकीला य । दवेऽपत्तिगरहिआ अन्नेसि होइ भावे उ॥१११३ ॥ धम्मत्थमुजएणं सवस्स अपत्तिअंन कायचं । इअ संजमोऽवि सेओ एत्थ य भयवं उदाहरणं ॥ १११४ ॥ सो तावसासमाओ तेसिं अप्पत्तिअं मुणेऊणं । परमं अबोहिबीअंतओ गओ हंतऽकालेऽवि ॥१११५ ॥ इय सवेणऽवि सम्मं सकं अप्पत्ति सइ जणस्स। नियमा परिहरिअचं इअरम्मि सतत्तचिंताओ॥१११६॥दाकट्ठाई विदलं इह सुद्धं जं देवयाइ भ (याउव) वणाओ।नो अविहिणोवणीअंसयं चकाराविअंजनो॥१११७॥ तस्सवि अ इमो नेओ सुद्धासुद्धपरिजाणणोवाओ। तकहगहणाओ जो सउणेअरसन्निवाओ उ ॥१११८॥ नंदाइ सुहो सद्दो भरिओ कलसोत्थ सुंदरा पुरिसा। सुहजोगाइ असउणो कंदिअसद्दाइ इअरो उ॥१११९॥ सुद्धस्सऽविगहिअस्सा पसत्थदिअहम्मि सुहमुहुत्तेणीसंकामणम्मिवि पुणो विन्नेआ सउणमाईआ॥११२०॥दारं कारवणेऽवि अतस्सिह भिअगाणऽइसंधणं न कायई । अवियाहिगप्पयाणं दिहादिप्फलं एअं ॥११२१॥ ते तुच्छगा वराया अहिएण दर्द उविंति परितोसं । तुट्ठा य तत्थ कम्मं तत्तो अहियं पकुवंति ॥ ११२२॥ धम्मपसंसाए तह केइ निबंधंति बोहिबीआई । अन्ने उ लहुअकम्मा एत्तो चिअ संपवुझंति ॥ ११२३ ॥ लोए असाहुवाओ अतुच्छभावेण सोहणो धम्मो। पुरिसोत्तमप्पणीओ पभावणा एव तित्थस्स ॥११२४॥दारं॥ सासयवुड्डीवि इहं भुवणगुरुजिणिंदगुणपरिन्नाए । तबिंबठावणत्थं सुद्धपवित्तीउ नियमेण ॥११२५ ॥ पिच्छिस्सं एत्थं इह वंदणगनिमित्तमागए साह । कयपुन्ने भगवंते गुणरयणणिही महासत्ते ॥११२६ ॥ . GAAAAAAABCA-CHI पञ्चव.४८ Jain Education Intel For Private & Personal Use Only Howw.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634