Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 590
________________ श्रीपञ्चव. ३ गणाणुण्णा ॥ २८५ ॥ Jain Education Inter गीअस्स ण उत्ता तज्जुत्तस्सेयरस्सवि तहेव । णिअमेण चरणवं जं न जाउ आणं विलंघेइ ॥ ११८१ ॥ न य गीअत्थो अण्णं ण णिवारह जोग्गयं मुणेऊनं । एवं दोण्हवि चरणं परिसुद्धं अण्णहा णेव ॥। १९८२ ॥ ता एव विरइभावी संपुष्णो एत्थ होइ णायचो । णिअमेणं अट्ठारससीलंगसहस्सरूवो उ ॥ ११८३ ॥ ऊत्तं ण कयाइवि इमाण संखं इमं तु अहिगिच्च । जं एअधरा सुत्ते णिद्दिट्ठा वंदणिजा उ ॥ ११८४ ॥ ता संसारविरतो अनंत मरणाइरुवमेअं तु । णाउं एअविउत्तं मोक्खं च गुरुवएसेणं ॥ ११८५ ॥ परमगुरुणो अ अणहे आणाऍ गुणे तहेव दोसे अ । मोक्खत्थी पडिवजिअ भावेण इमं विसुद्वेणं ॥ ११८६ ॥ विहिआणुहाणपरोसत्तणुरुवमिअरंपि संधतो । अण्णत्थ अणुवओगा खवयंतो कम्मदोसेऽवि ॥ १९८७ ॥ निरभिसंगो आणामित्तंमि सङ्घहा जुत्तो । एगग्गमणो घणिअं तम्मि तहामूढलक्खो अ ॥ ११८८ ॥ तह तिलपत्तिधाणायगयो राहवेहगगओ वा । एअं चएइ काउं ण तु अण्णो खुद्दसत्तोत्ति ॥ ११८९ ॥ एतोचिअ णिद्दिट्ठो पुवायरिएहिं भावसाहुत्ति । हंदि पमाणठिअत्थो तं च पमाणं इमं होइ ॥ ११९० ॥ सत्थुत्तगुणी साहू ण सेस इह णो पण इह हेऊ । अगुणत्ता इति णेओ दिहंतो पुण सुवण्णं च ॥ ११९१ ॥ विसघाइरसायण मंगलत्थविणए पयाहिणावत्ते । गुरुए अडज्झऽकुत्थे अट्ठ सुवण्णे गुणा हुंति ॥ ११९२ ॥ इअ मोहविसं घायइ सिवोवएसा रसायणं होई । गुणओ अ मंगलत्थं कुणइ विणीओ अ जोगत्ति ॥ ११९३ ॥ - मग्गणुसारि पयाहिण गंभीरो गुरुअओ तहा होइ । कोहग्गिणा अडज्झो अकुत्थ सह सीलभावेण ॥ ११९४ ॥ For Private & Personal Use Only X4444 भावस्तवे १८ सहस्रशीलांगा नि गुणाश्च ॥ २८५ ॥ www.jainelibrary.org

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