Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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ता एअगया चेवं हिंसा गुणकारिणित्ति विन्नेआ।तह भणिअणायओ चिय एसा अप्पेह जयणाए ॥१२७६॥ तह संभवंतरूवं सवं सवण्णुवयणओ एअं। तं णिच्छिकहिआगमपउत्तगुरुसंपयाएहिं ॥ १२७७॥ वेअवयणं तु नेवं अपोरसेअंतु तं मयं जेणं । इअमचंतविरुद्धं वयणं च अपोरसेअंच ॥ १२७८ ॥ जं वुच्चइत्ति वयणं पुरिसाभावे अ नेअमेअंति । ता तस्सेवाभावो णिअमेण अपोरसे अत्ते ॥ १२७९ ॥ तवावारविउत्तं ण य कत्थइ सुबईह तं वयणं । सवणेऽवि अणासंका अदिस्सकत्तुभवाऽवेद ॥ १२८० ॥ अद्दिस्सकत्तिगं णो अपणं सुबइ कहं णु आसंका ? । सुवइ पिसायवयणं कयाइ एअंतु ण सदेव ॥ १२८१॥ वण्णायपोरसेअं लोइअवयणाणवीह सवेसिं । वेअम्मि को विसेसो? जेण तहिं एसऽसग्गाहो ॥ १२८२ ॥ णय णिच्छओविहु तओ जुज्जइ पायं कहिंचि सपणाया।जं तस्सऽत्थपगासणविसएह अईदिया सत्ती ॥१२८३॥ नो पुरिसमित्तगम्मा तदतिसओऽविहु ण बहुमओ तुम्हें । लोहअवयणेहिंतो दिटुं च कहिंचि वेहम्मं ॥१२८४॥ ताणिह पोरसेआणि अपोरसेआणि वेयवयणाणि । सग्गुवसिअमुहाणं दिट्ठो तह अत्थभेओऽवि ॥१२८५॥ न य तं सहावओ चिय सत्थपगासणपरं पईओघ । समयविभेआजोगा मिच्छत्तपगासजोगा य॥१२८६॥ इंदीवरम्मि दीवो पगासई रत्तयं असंतंपि। चंदोऽवि पीअवत्थं धवलं न य निच्छ ओ तत्तो ॥१२८७ ॥ एवं नो कहिआगमपओगगुरुसंपयायभावोऽवि । जुज्जा हो इहं खलु णाएणं छिपणमूलत्ता ॥ १२८८ ॥ ण कयाइ इओ कस्सइ इइ णिच्छयमो कहिंचि वत्थुम्मि। जाओत्ति कहइ एवं जं सो तत्तं स वामोहो ॥१२८९।।
COCOCOCOCCACHA
पञ्चव.४५
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