Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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लेवालेवंति इह लेवाडेणं अलेघडं जं तु । अण्णण असंमिस्सं दुगंषि इह होइ विणेअं॥१४५३ ॥ दारं ॥ अल्लेवं पयईए केवलगंपि लु न तस्सरूवं तु । अण्णे उ लेवकारी अलेवमिति सूरओ बिंति ॥ १४५४॥ दारं ॥ णायंबिलमेअंपि हु अइसोसपुरीसभेअदोसाओ। उस्सग्गिअंतु किं पुण पयईए अणुगुणं जं से॥१४५५॥ दारं॥ पडिमत्ति अमासाई आईसहा अभिग्गहा सेसा। णो खल्लु एस पयजइ जंतस्थ ठिओ विसेसेणं॥१४५६॥ दारं। जिणकप्पत्ति अदारं असेसदाराण विसयमो एस।एअंमि एस मेराअवदायविवजिआणिअमा॥१४५७।।दार।। मासं निवसइ खित्ते छचीहीओ अकुणइ तत्थविअ । एगेगमडइ कम्माइवजणत्थं पइदिणं तु॥१४५८॥ दारं॥ कह पुण होज्जा कम्म एत्थ पसंगेण सेसयं किंपि । वोच्छामि लमाणं सीसजणविबोहणहाए ॥ १४५९ ॥
आभिग्गहिए सद्धा भत्तोगाहिमग बीय तिअ पूई।
चोअग निधयणति अ उक्कोसेणं च सत्त जणा ॥ १४६०॥[सरछोडगाहा ] जिणकप्पाभिग्गहिअंदटुं तवसोसिअंमहासत्तं । संवेगागयसद्धा काई सड्डी भणिजाहि ॥ १४६१॥ किं काहामि अहण्णा ? एसो साह ण गिण्हए एअं। णत्थि महं तारिसयं अण्णं जमलजिआ दाहं ॥१४६२॥ सवपयत्तेण अहं कल्लं काऊण भोअणं विउलं । दाहामि पयत्रोणं ताहे भणई अ सो भयवं ॥ १४६३ ॥ अणिआओ बसहीओ भमरकालाणं च गोउलाणं च । समणाणं खजणागं सारहाणं च मेहाणं ॥१४३४ ॥ तीए अ उवक्खडि मुका बीही अ तेण धीरेण । अहीणमपरितंतो थिइअंच पहिंडिओ वीहिं ॥ १४६५ ॥
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PEPTIT - HÀ
Nam Hàn
1-3-4551-5
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