Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 618
________________ श्रीपञ्चव. ३गणाणुण्णा ॥२९ ॥ ACCCCCCORRECAMERCOMCN लग्गादिसुत्तरते तो पडिवजित्तु खित्तबाहि ठिआ। गिण्हंति जं अगहिअंतत्थ य गंतूण आयरिओ॥१५४३॥ यथालन्दतेसिं तयं पयच्छइ खित्तं एन्ताण तेसिसे दोसा । वन्दतमबंदंते लोगम्मी होइ परिवाओ ॥ १५४४॥ कल्पः ण तरिज जई गंतुं आयरिओ ताहे एइ सो चेव । अंतरपल्लीपडिवसभगामबहि अण्णवसही वा ॥१५४५ ॥ तीए अ अपरिभोए ते बंदंतीण वंदई सो उ । तं चित्तुमपडिबंधा ताएँ जहिच्छाएँ विहरंति ॥ १५४६॥ जिणकप्पिआ व तहिअंकिंचि तिगिच्छं तु ते उ न करिति । जिप्पडिकम्मलरीरा अवि अच्छिमलंपि णऽवणिति ॥ १५४७॥ धेराणं णाणत्तं अतरंते अपिणंति गच्छरस । तेऽवि अ सिफासुएणं करिति सच तु परिकम्मं ॥१५४८॥ एकिकपडिग्गहगा सप्पाउरणा हवंति थेरा उ । जे पुगऽभी जिणकप्पे भय तसिं बत्थपायाई ।। १५४९ ॥ गणमाणो जहण्णा तिणि गणा सयग्गसो अउकोसा। पुरिसपमाणं पण्णरस सहस्ससो चेच उक्कोसो ॥ १५५० ॥ पडिवजमाणगा वा एकादि हविज ऊणपक्खेवे । होति जहण्णा एए सयग्गसो चेव उक्कोसा ॥ १५५१॥ पुवपडिवनगाणवि उकोस जहण्णओ परीमाणं । कोडिपुहत्तं भणि होइ अहालंदिआणं तु ॥ १५५२॥ कयमित्थ पसंगेणं एसो अन्भुजओ इह विहारो। संलेहणासमो खलु सुविसुद्धो होइ णायबो ॥ १५५३ ॥|| पाएण चरमकाले जमेस भणिओ सयाणमणवजो। भयणाए अण्णया पुण गुरुकज्जाइहिं पडिबद्धा ॥१५५४॥ माmTTYSHOTTIMIRITAITIATTERIETIRITUREmmanumarmulaMETEREnime maamarpa २९॥ Jain Education into For Private & Personal Use Only H owww.jainelibrary.opa

Loading...

Page Navigation
1 ... 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634