Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीपञ्चव. ३गणाणुण्णा
जिनकल्पः यथालन्दादिश्च
॥२९८॥
SAGAR CACACANCHAMAKACीर
जम्हा उत्तरकप्पो एसोऽभत्तट्टमाइसरिसो उ । एगग्गयापहाणो तम्भंगे गुरुअरो दोसो ॥१५१६ ॥ दारं ॥ कारणमालंबणमो तं पुण नाणाइअंसुपरिसुद्धं । एअस्स तं न विजइ उचियं तव (प) साणा पायं ॥१५१७॥ सवत्थ निरवयक्खो आढत्तं चिअ दृढं समाणितो । वह एस महप्पा किलिट्ठकम्मक्खयणिमित्तं ॥१५१८॥ णिप्पडिकम्मसरीरो अच्छिमलाईवि णावणेइ सया । पाणंतिएवि अ तहा वसणंमि न वद्दई बीए॥१५१९॥ अप्पबहुत्तालोअणविसयाईओ उ होइ एसोति । अहवा सुभभावाओ बहुअंपेअंचिअ इमस्स ॥ १५२०॥ तहआए पोरुसीए भिक्खाकालो विहारकालो असेसासु तु उस्सग्गो पायं अप्पा य णिद्दत्ति ॥ १५२१ ॥ जंघाबलम्मि खीणे अविहरमाणोऽविणवरणावजे। तत्थेव अहाकप्पं कुणइ अजोगं महाभागो॥१५२२॥दारं। एसेव गमो णिअमा सुद्धे परिहारिए अहालंदे । नाणत्ती उ जिणेहिं पडिवजह गच्छऽगच्छे वा ॥ १५२३ ॥ तवभावणणाणत्तं करिति आयंबिलेण परिकम्मं । इत्तरिअ धेरकप्पे जिणकप्पे आवकहिआ उ॥ १५२४ ॥ पुणे जिणकप्पं वा अइंती तं चेव वा पुणो कप्पागच्छ वा यति पुणो तिपिणवि ठाणा सिमविरुद्धा॥१५२५॥ इत्तरिआणुवसग्गा आयंका वेयणा य ण भवंति।आवकहिआण भइआ तहेव छग्गामभागा उ॥१५२६॥ खित्ते कालचरित्ते तित्थे परिआगमागमे वेए । कप्पे लिंगे लेसा झाणे गणणा अभिगहा य ॥ १५२७॥
पञ्चावण मुंडावण मणसाऽऽवण्णेऽवि से अणुग्घाया। कारणणिप्पडिकम्मा भत्तं पंथो अतइआए ॥ १५२८ ॥ दारगाहा ॥
॥२९८॥
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