Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीपञ्चव. ३गणागुण्णा
अभ्युद्यतमरणं
Xxॐॐ254--
अजाओगीआणं असमत्तो पणगसत्तगा हिट्ठा । उउवासासुंभणिओ जहक्कम वीअरागेहिं ॥१५६९॥ पडिसिद्धवजगाणं थेरविहारो अ होइ सुद्धोत्ति । इहरा आणाभंगो संसारपवणो णियमा ॥ १५७०॥ कयमित्थ पसंगणं सविसयणिअया पहाणया एवं । दहव्वा बुद्धिमया गओ अ अब्भुजयविहारो॥१५७१ ॥ अन्भुजयमरणं पुण अमरणधम्मेहिं वणिअंतिविहं । पायवइंगिणिमरणं भत्तपरिण्णा य धीरेहिं ॥१५७२॥ संलेहणापुरस्सरमेअं पाएण वा तयं पुव्विं । वोच्छं तओ कमेणं समासओ उज्जयं मरणं ॥ १५७३ ॥ चत्तारि विचित्ताई विगईणिजूहिआई चत्तारि । संवच्छरे उ दोणि उ एगंतरिअंच आयाम॥१५७४॥ णाइविगिट्ठो अतवो छम्मासे परिमिअंच आयामं । अण्णेऽवि अ छम्मासे होइ विगिटुंतवोकम्मं ॥ १५७५ ॥ वासं कोडीसहि आयामं तह य आणुपुबीए । संघयणादणुरूवं एत्तो अद्धाइनिअमेण ॥ १५७६ ॥ देहम्मि असं लिहिए सहसा धाऊहिं खिज्जमाणेहिं । जायइ अज्झाणं सरीरिणो चरमकालम्मि ॥१५७७॥ विहिणा उ थेवथेवं खबिजमाणेहिं संभवइ णेअं। भवविडविवीअभूअं इत्थ य जुत्ती इमा आ॥१५७८ ॥ सइ सुहभावस्स तहा थेवविवक्खत्तणेण नो बाहा । जायइ बलेण महया थेवस्सारंभभावाओ ॥१५७९॥ ओवक्कमणं एवं सप्पडिआरं महाबलं णेअं। उचिआणासंपायण सइ सुहभावं विसेसेणं ॥ १५८०॥ थेवमुवकमणिशं बझं अभितरं च एअस्स । जाइ इअ गोअरत्तं तहा तहा समयभेएणं ॥ १५८१॥ जुगवं तु खविजंतं उदग्गभावेण पायसो जीवं । चावइ सुहजोगाओ बहुगुरुसेण्णं व सुहडंति ॥ १५८२॥
॥३०
॥
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