Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
Jain Education
आणा इत्थ पमाणं विष्णेआ सङ्घहा उ परलोए । आराहणाऍ तीए धम्मो बज्क्षं पुण निमित्तं ॥ १३८४ ॥ उवगरणं उवगारे तीए आराहणस्स वहतं । पावद जहत्थनामं इहरा अहिगरणमो भणिअं ॥ १३८५ ॥ दारं ॥ परिकम्मं पुण इह इंदियाइ विणिअमणभावणा णेआ। तमवायादालोअण विहिणा सम्मं तओ कुणह ॥ १३८६ ॥ इंदिअकसायजोगा विणियमिआ तेण पुत्रमेव णणु । सचं तहावि जयई तज्जय सिद्धिं गणेंतो उ ॥ १३८७ ॥ इंदिअजोगेहिं तहा हऽहिगारो जहा कसाएहिं । एएहिं विणा णेए दुहवुड्डीचीअभूआउ || १३८८ ॥ जेण उ तेऽवि कसाया णो इंदिअजोगविरहओ हुंति ।
तणिमपि तओ तयत्थमेवेत्थ कायवं ॥ १३८९ ॥ दारं ।
इअ परिकम्मिअभावोऽणवभत्थं पोरिसाइ तिगुणतवं । कुणइ छुहाविजयट्ठा गिरिणइसीहेण दितो ॥। १३९० ॥ इक्किं ताव तवं करे जह तेण कीरमाणेणं । हाणी ण होइ जइआवि होइ छम्मासुवस्सग्गो ।। १३९१ ॥ अप्पाहारस्स ण इंदिआई विसएस संपयति । नेअ किलम्मइ तवसा रसिएसन सज्जई आवि ।। १३९२ ॥ भावणाएँ पंचिदिआणि दंताणि जस्स वसमेंति । इंदिअजोग्गायरिओ समाहिकरणाई कारेइ ॥ १३९३ ॥ इअ तवणिम्माओ खलु पच्छा सो सत्तभावणं कुणइ । निद्दाभयविजयट्ठा तत्थ उ पडिमा इमा पञ्च ॥ १३९४ ॥ पढमा वस्सयम्मी बीया बाहिं तइया चउकंमि । सुन्नघरम्मि चउत्थी तह पंचमिआ मसामि ॥ १३९५ ॥ एआसु थेवथेवं पुपवन्तं जिणेइ णिदं सो । मूसगछिका उ तहा भयं च सहसुग्भवं अजिअं ॥। १३९६ ।।
1
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634