Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीपञ्चव. ३ गणागुण्णा
बलभावना प्रतिपत्तिः द्वाराणि
॥२९४॥
आवस्सिणिसीहिमिच्छापुच्छणमुवसंपयंमि गिहिएसु । अण्णा सामायारी ण होइ से सेसिआ पंच॥१४२३॥ आवस्सिअंनिसीहिअ मोत्तुं उवसंपयं च गिहिएसु । सेसा सामायारी ण होइ जिणकप्पिए सत्त॥१४२४॥ अहवावि चक्कवाले सामायारी उ जस्स जा जोग्गा । सा सवा वत्तवा सुअमाईआ इमा मेरा ॥ १४२५ ॥ सुअसंघयणुवसग्गे आयके वेअणा कइ जणा उ । थंडिल्ल वसहि केचिर उच्चारे चेव पासवणे ॥१४२६ ॥
ओवासे तणफलए सारक्खणया य संथवणया य।पाहुडिअअग्गिदीवे ओहाण वसे कइ जणाओ॥१४२७॥ भिक्खायरिआ पाणय लेवालेवे अतह अलेवे । आयंबिलपडिमाई जिणकप्पे मासकप्पे उ॥१४२८॥दारगाहा। आयारवत्थु तइयं जहण्णय होइ नवमपुवस्स।तहियं कालण्णाणं दस उक्कोसेण भिण्णाई॥१४२९ ॥ दारं॥ पढमिल्लयसंघयणाधिईए पुण वजकुड्डसामाणा। पडिवजंति इमं खलु कप्पं सेसा ण उ कयाइ ॥१४३०॥ दारं।
दिवाई उवसग्गा भइआ एअस्स जइ पुण हवंति । तो अबहिओ विसहइ णिचलचित्तो महासत्तो ॥१४३१ ॥ दारं ॥ आयंको जरमाई सोवि हु भइओ इमस्स जइ होह।
णिप्पडिकम्मसरीरो अहिआसइ तंपि एमेव ॥ १४३२ ॥ दारं ॥ अन्भुवगमिआ उवक्कमा य तस्स वेअणा भवे दुविहा । धुवलोआई पढमा जराविवागाइआ बीआ॥१४३३॥ एगोअ एस भयवं णिरवेक्खे सबहेव सवत्थ। भावेण होइ निअमा वसहीओ दवओ भइओ॥१४३४॥दारं॥
॥२९४॥
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