Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
श्रीपञ्चव. ३ गणाणुण्णा
द्रव्यस्तक कर्तव्यता
॥२८४॥
जइणो अदूसिअस्सा हेआओ सबहा णिअत्तस्स । सुद्धो अ उवादेए अकलंको सबहा सो उ ॥११५३ ॥ असुहतरंडत्तरणप्पाओ दवत्थओऽसमस्थो अ । णइमाइसु इअरो पुण समत्तबाहुत्तरणकप्पो ॥११५४॥ कडुगोसहाइजोगा मंथररोगसमसण्णिहो वावि। पढमो विणोसहेणं तक्खयतुल्लो उ बीओ उ॥११५५ ॥ पढमाउ कुसलबंधो तस्स विवागेण सुगइमाईआ। तत्तो परंपराए बिइओवि हु होइ कालेणं ॥ ११५६ ॥ जिणविंवपइट्ठावणभावजिअकम्मपरिणइवसेणं । सुगईअ पइट्ठावणमणहं सइ अप्पणो जम्हा ॥ ११५७ ॥ तत्थवि अ साहुदंसणभावजिअकम्मओ उ गुणरागो। काले अ साहुदंसण जहकमेणं गुणकरं तु॥१९५८॥ पडिबुझिस्संतऽण्णे भावजिअकम्मओ उ पडिवत्ती। भावचरणस्स जायइ एअंचिअ संजमो सुद्धो ॥११५९॥ भावत्थओ अ एसो थोअवोचिअपवित्तिओ णेओ। णिरवेक्खाणाकरणं कयकिच्चे हंदि उचिअंतु॥११६०॥ एअंच भावसाहू विहाय णऽण्णो चएइ काउं जे । सम्मं तग्गुणणाणाभावा तह कम्मदोसा य ॥ ११६१॥ जं एअं अट्ठारससीलंगसहस्सपालणं णेअं। अच्चंत भावसारं ताई पुण होंति एआई ॥११६२॥ जोए करणे सण्णा इंदिअ भोमाइ समणधम्मे अ। सीलंगसहस्साणं अट्ठारसगस्स णिप्फत्ती ॥११६३ ॥ करणाइ तिणि जोगा मणमाइणि उ भवंति करणाई। आहाराई सन्ना चउ सोत्ताईदिआ-पंच ॥ ११६४ ॥ भोमाई णव जीवा अजीवकाओ अ समणधम्मो अ। खंताइ दसपगारो एव ठिए भावणा एसा ॥ ११६५॥ ण करेइ मणेणाहारसन्नविप्पजढगो उ णियमेण । सोइंदियसंवुडो पुढविकायारंभ खंतिजुओ ॥ ११६६ ॥
| ॥२८४॥
Jan Education Inter
254
For Private & Personal Use Only
raanw.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634