Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
मोत्तण मासकप्पं अन्नो सुत्तम्मि नत्थि उ विहारो। ता कहमाइग्गहणं? कज्जे ऊणाइभावाओ॥ ८९६॥ । एअंपि गुरुविहाराओ विहारो सिद्ध एव एअस्स । भेएण कीस भणिओ? मोहजयट्ठा धुवो जेणं ॥ ८९७ ॥ इयरेसि कारणेणं नीआवासोऽवि दवओ हुजा । भावेण उ गीआणं न कयाइ तओ विहिपराणं ॥ ८९८ ॥ गोअरमाईआणं एत्थं परिअत्तणं तुमासाओ। जहसंभवं निओगो संथारम्मी विही भणिओ॥ ८९९॥ | एअस्सवि पडिसेहो निअमेणं दवओवि मोहुदए । जइणो विहारखावणफलमित्थ विहारगहणं तु ॥९००॥ आईओञ्चिअ पडिबंधवाजणत्थं च हंदि सेहाणं । विहिफासणथमहवा सेहविसेसाइविसयं तु ॥९०१॥ दारं सज्झायाईसंतो तित्थयरकुलाणुरूवधम्माणं । कुजा कहं जईणं संवेगविवडगं विहिणा ॥ ९०२॥ जिणधम्मसुहिआगं सुणिज चरिआई पुवसाहूणं । साहिज्जइ अन्नेसिं जहारिहं भावसाराइं॥९०३ ॥ भयवं दसन्नभो सुदंसणो थूलभद्द पहरो अ । सफलोकयगिहचाया साहू एवंविहा होति ॥ ९०४॥ अणुमोएमो तेसिं भगवंताण चरिअं निरआरं । संवेगबहुलयाए एव विसोहिज़ अप्पाणं ॥९०५॥ इअ अप्पणो घिरतं तकुलपत्ती अहंति बहुमाणा । तद्धम्मसमायरणं एवंपि इमं कुसलमेव ॥ ९०६॥ अण्णेसिपि अ एवं थिरत्तमाईणि होति निअमेणं । इह सो संताणो खलु विकहामहणो मुणेअबो॥९०७॥ विस्सोअसियारहिओ एव पयत्तेण चरणपरिणामं । रक्खिज दुल्लहं खलु लद्धमलद्धं व पाविजा ॥९०८॥ णो उघठावणएच्चिअनिअमा चरणंतिदवओ जेण। साऽभवाणवि भणिआ छउमत्थगुरूण सफला य ॥९०९॥18
Jain Education inte
For Private & Personal Use Only
D
ww.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634