Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
XXXSAKSECORDS
णय अस्थि कोइ अन्नो एत्थं हेऊ अपत्तपुरोत्ति।जमणादौ संसारे केण समंणप्पडि(णं सद्धिंण पडि)जोगो १०३३ पच्छावि तस्स घडणे किं कारणमह अकारणं तं तु । निच्चं तब्भावाई कारणभावे अ णाहेऊ ॥१०३४॥ तस्सवि एवमजोगा कम्मायत्ता य सवसंजोगा। तंपुक्कोसहिईओ गंठिं जाणंतसो पत्तं ॥१०३५ ॥ ण य एयभेयओ तं अन्नं कम्मं अणेण चरियत्थं । सइभावाऽणाइमया कह सम्मं कालभेएणं? ॥ १०३६॥ किं अन्नेण तओ चिअ पायमिअंजं च कालभेएणं । एत्थवि तओऽवि हेऊ नणु सो पत्तो पुरा बहुहा ॥१०३७॥ सबजिआणं चिअर्ज सुते गेविजगेसु उववाओ। भणिओण य सो एअंलिंगं मोत्तुं जओ भणियं ॥१०३८॥ जे दंसणवावना लिंगग्गहणं करिति सामण्णे । तेसिं पिअ उववाओ उक्कोसो जाव गेविजा ॥ १०३९॥ । लिंगे अ जहाजोग्गं होह इमं सुत्तपोरिसाईअंजं तत्थ निचकम्मं पन्नत्तं वीअरागेहिं ॥१०४०॥ एवं पत्तोऽयं खलु न य सम्मत्तं कहं तओ एअं ?। कह सोचिअ एअस्स कालभेएण हेउत्ति ॥ १०४१॥ भण्णइ पत्तो सो ण उ उल्लसिअंजीववीरिअंकहवि। होउल्लसिए अतयं तंपि अ पायं तओ चेव ॥ १०४२॥ जह खाराईहितो असइंपि अपत्तवेहपरिणामो। विज्झइ तेहिंतो चिअ जचमणी सुज्झइ तओ उ ॥१०४३॥
तह सुअधम्माओचिय असइंपि अपत्तविरिअपरिणामो।
उल्लसई तत्तो चिअ भयो जीवो विलुज्झइ अ॥ १०४४ ॥ तस्सेव य (वे) स सहावो जं तावइएसु तह अईएसु । सुअसंजोएसु तओ तहाविहं वीरिअलहइ ॥१०४५॥
Jan Education Interna
For Private & Personal Use Only
ainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634