Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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छेअसुआईएमु अ ससमयभावेऽवि भावजुत्तो जो। पिअधम्मऽवजभीरू सो पुण परिणामगोणेओ॥९७८।। सो उस्सग्गाईणं विसयविभागं जहडिअं चेव । परिणामेइ हि ता तस्स इमं होइ वक्खाणं ॥९७९॥ अहपरिणामगऽपरिणामगाण पुण चित्तकम्मदोसेणं । अहियं चिअ विष्णेयं दोसुदए ओसहसयाणं ॥९८०॥ तेसि तओचिय जायइ जओ अणत्थो तओण तं मइमं । तेसिं चेव हियहा करिज पुजा तहा चाहु॥९८१॥ आमे घडे निहत्तं जहा जलं तं घडं विणासेइ । इअ सिद्धंतरहस्सं अप्पाहारं विणासेइ ॥ ९८२ ॥ न परंपरयावि तओ मिच्छाभिनिवेसभाविअमईओ। अन्नेसिंऽपिअ जायह पुरिसत्थो सुडरूवो अ॥९८३ ॥ अविअ तओ चिअ पायं तम्भावोऽणाइमंति जीवाणं । इअ मुणिऊण तयत्थं जोगाण करिज वक्खाणं ॥९८४॥ उपसंपण्णाण जहाविहाणओ एव गुणजुआणपि । सुत्तत्थाइकमेणं सुविणिच्छिअमप्पणा सम्मं ॥९८५ ॥ उवसंपयाय कप्पो सुगुरुसगासे गहिअसुत्तत्थो। तदहिगगहणसमत्थेऽणुन्नाओ तेण संपन्जे ॥ ९८६ ॥ अप्परिणयपरिवारं अप्परिवारं च णाणुजाणावे । गुरुमेसोऽवि सयं विअ एतदभावेण धारिजा ॥९८७॥
संदिह्रो संदिहस्स अंतिए तत्थ मिह परिचाओ (च्छा उ)
साहु अमग्गे चोअण तिदु (गु)वरि गुरुसम्मए चागो ॥ ९८८ ॥ गुरुफरुसाहिगकहणे सुजोगओ अह निवेअणं विहिणा। सुअखंधादो निअमो आहवऽणुपालणा चेव ॥९८९॥ अस्सामित्तं पूआ इअराविक्खाए जीअ सुहभावा । परिणमइ सुअं आहत्वदाणगहणं अओ चेव ॥ ९९०॥
MESSAGAMANG
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