Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
श्रीपञ्चव.
३ गणा
णुण्णा
॥ २७८ ॥
Jain Education Intern
अह वक्खाणेअ जहा जहा तस्स अवगमो होइ । आगमिअमागमेणं जुत्तीगम्मं तु जुत्तीए ॥ ९९९ ॥ जम्हा उ दोपहवि इहं भणिअं पन्नवगकहणभावाणं । लक्खणमणघमईहिं पुवायरिएहिं आगमओ ॥ ९९२ ॥ जो हेउवापक्खम्मि हेउओ आगमे अ आगमिओ। सो ससमयपण्णवओ सिद्धंतविराहओ अन्नो ॥ ९९३ ॥ आणा गज्झो अत्थो आणाए चेव सो कहेयधो । दिनंतिअ दिहंता कहण विहि विराहणा इहरा ॥ ९९४ ॥ तो आगमउयं अम्मि तह गोरवं जणतेणं । उत्तमनिदंसणजुअं विचित्तणयगन्भसारं च ॥ ९९५ ॥ भगवते तपचकारि (य) गंभीरसारभणिईहिं । संवेगकरं निअमा वक्खाणं होइ कायचं ॥ ९९६ ॥ होति विजयम्मी दोसा एत्थं विवज्जयादेव । ता उवसंपन्नाणं एवं चिअ वुद्धिमं कुजा ॥ ९९७ ॥ arosa fareकरणे णेगतेणेह होइ सरणं तु । नहि एअम्मिवि काले विसाइ सुहयं अमंतअं ॥ ९९८ ॥ एत्थं च वितहकरणं नेअं आउहिआउ सर्वपि । पावं विसाइतुलं आणा जोगो अ मंतसमो ॥ ९९९ ॥ ता अम्मिवि काले आणाकरणे अमूढलक्खेहिं । सत्तीए जइअवं एत्थ विही हंदि एसो अ ॥ १००० ॥ मज्जण निसिज्ज अक्खा किइकम्मुस्सग्ग वंदणं जिट्ठे । भासतो होइ जिट्ठो न उपजाएण तो वंदे ॥ १००१ ॥ ठाणं पमजिणं दोन्नि निसिजाउ होंति कायवा । एक्का गुरुणो भणिआ बीआ पुण होइ अक्खाणं ॥ १००२ ॥ दो चैव मत्तगाईं खेले काइअ सदोसगस्सुचिए । एवंविहोऽवि णिचं वक्खाणिजत्ति भावत्थो ॥ १००३ ॥ जावइआ उ सुणिती सवेवि हु ते तओ अ उवउत्ता । पडिले हिऊण पोत्तिं जुगवं वंदति भावणया ॥ १००४ ॥
For Private & Personal Use Only
उपसंपद्य
वस्था कथनविधिः
॥ २७८ ॥
w.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634