Book Title: Panchvastukgranth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 562
________________ श्रीपञ्चव. ३ वयठवणा ॥२७१॥ पायपमजणहेउं केसरिआ इत्य होइ नायवा । पडलसरूवपमाणाइ संपयं संपवक्खामि ॥ ८०१॥ उपकरणाजेहिं सविआ ण दीसह अंतरिणो तारिसा भवे पडला । तनामानं प्रतिषिण व पंच व सत्त व कयलीपत्तोवमा सुहमा (लहुया)॥८०२॥ योजनं च गिम्हासु तिन्नि पडला चउरो हेमंत पंच वासासु । उक्कोसगा उ एए एत्तो पुण मज्झिमे वोच्छं॥ ८.३॥ गिम्हासु हुंति चउरो पंच य हेमंति छच्च वासासु । एए खलु मज्झिमगा एत्तो उ जहन्नए वोच्छं ॥८०४ ॥ गिम्हासु पंच पडला छप्पुण हेमंति सत्त वासासु । तिविहम्मि कालछेए पायावरणा भवे पडला ॥८०५ ॥ अड्डाइजा हत्था दीहा बत्तीसअंगुला रुंदा । बिइअं पडिग्गहाओ ससरीराओ उ निप्फन्नं ॥ ८०६॥ पुष्फफलोदगरयरेणुसउणपरिहार एयरक्खट्टा । लिंगस्स य संवरणे वेओदयरक्खणे पडला ॥ ८०७॥ माणं तु रयत्ताणे भाणपमाणेण होइ निष्फन्नं । पायाहिणं करितं मज्झे चउरंगुलं कमइ ॥ ८०८॥ मूसगरयउक्करे वासे सिण्हा रए अ रक्खट्टा । होति गुणा रयताणे एवं भणिआ जिणिदेहि ॥ ८०९॥ छक्कायरक्खणट्ठा पायग्गहणं जिणेहिं पन्नत्तं । जे अ गुणा संभोगे हवंति ते पायगहणेऽवि ॥ ८१०॥ अतरंतबालवुड्डा सेहाऽएसा गुरू असहुवग्गो। साहारणोग्गहालद्विकारणा पायगहणं तु ॥ ८११॥ ॥२७१॥ कप्पा आयपमाणा अट्ठाइजा उ आयया हत्था । दो चेव सुत्तिआ उन्निओ अ तइओ मुणेयको ।। ८१२॥ तणगहणानलसेवानिवारणा धम्मसुक्कझाणट्ठा । दिट्ट कप्पग्गहणं गिलाणमरणट्ठया चेव ॥ ८१३॥ Jain Education inte For Private & Personal Use Only Newww.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634