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अन्य ग्रंथों से सम्बन्ध
पाहुडदोहा और कुन्दकुन्दाचार्य दिगम्बर सम्प्रदाय के प्राचीनतम और उच्चतम आचार्य कुन्दकुन्द के सभी ग्रंथ आध्यात्मिक भावों से भरे हुए हैं, किन्तु उनके भाव पाहुड में विशेष रूप से वे भाव पाये जाते हैं जो प्रस्तुत ग्रंथ में आये हैं, तथा भापा और रचना भी कहीं कहीं एक सी दिख जाती है। विशेपतः उल्लेखनीय गाथा ८६ है जिसमें 'सालिसित्य' का उदाहरण उसी रूप से और उसी भाव में दिया गया है जैसा प्रस्तुत ग्रंथ के पांचवे दोहे में (देखो दोहा नं. ५ की टिप्पणी)। ४७ वी गाथा तो यहां नं. २३ पर पूरी ही उद्धृत की हुई पाई जाती है ( देखो दोहा नं. २३ की टिप्पणी)।
पाहुडदोहा और योगीन्द्रदेव योगीन्द्रदेव के दो ग्रंथ-परमात्मप्रकाश और योगसारबहुत दिन के प्रकाशित हो चुके हैं। इन दोनों ग्रंथों और प्रस्तुत ग्रंथ में असाधारण साम्य है -केवल साम्य ही नहीं किन्तु इस ग्रंथ का लगभग पंचमांश भाग परमात्मप्रकाश में प्रायः ज्यों का त्यों पाया जाता है । दोहों का ऐक्य इस प्रकार है -
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* परमात्म प्रकाश-सहारनपुर १९०९, रायचन्द्र शास्त्रमाला, बम्बई
१९१६. अब पुनः संशोधन हो रहा है। योगसार-माणिकचंद्र ग्रंथमाला नं. २१, बम्बई १९२२, .