Book Title: Pahuda Doha
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Balatkaragana Jain Publication Society

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Page 183
________________ दोहों की वर्णानुक्रमणिका इंदियविसय चएवि. वढ २०२. उपलाणहि जोइय करहुलउ ४२. उप्पजइ जेण वियोहु ण वि ८२. उम्मणि थका जासु मणु १०४. उम्मूलिवि ते मूलगुण २१. उववासविसेस करिवि यह २०५. उववासह होइ पलेवणा २१४. उव्वाल चोप्पदि चिट करि १८. उव्वस वसिया जो करइ १९२, एकाग जाणहि वटिय ११४. एक्कु सुवेयद अण्णु ण वेयइ १६५. एमइ अप्पा झाइयद १७२. फडइ सरिजल जलहिविपिहिउ १६७, कम्महं करउ मावडउ ३६. फम्मु पुराइउ जो खबइ ७७. कम्मु पुराइउ जो खवइ १९३. करहा चरि जिणगुणथलिहिं ११२. कायोऽस्तीत्यर्थमाहारः २१८. कालहिं पवहिं रविससिहि २१९. कासु समाहि करउं को अचउं १३९, कि किनइ बहु अक्खरहं १२४. कि बहुएं अइवट वक्षिण १४५. कुहिएण पूरिएण य १९५० केवछ मलपरिवजियड ८९. खंतु पियंतु वि जीव जइ ६३. गमणागमण विवानियत १३७. गहिलड गहिल्ट जणु भणइ १४३. गुरु दिणयरु गुरु हिमकरण १. घरवासउ मा जाणि जिय १२. चिंतइ जंपइ कुणइ ण वि ६.. छत्त वि पाइ सुगुरुवडा १३०. छहदसंणगंथि बहुल १२५. छहदसणधइ पडिय ११६.. छंहेविण गुणरयणणिहि १५१. जद इकहि पावीसि पय १७७. जइ मणि कोहकरिविकलहीजइ १४०, जइ लद्धट माणिकडउ २१६. जइ वारउं तो तहिं जि पर ११८. जरइ ण मरहण संभवइ ५४. जसु जीवंतह मणु मुवउ १२३. जसु मणि गाणु ण विष्फुरइ कम्महं २४, जसु मणि णाणु ण विष्फुरइ सय ६५ जमु मणि णिवसइ परमपउ ६६. जं दुबबु वि तं मुक्खु किउ १०. जं लिहिउ ण पुच्छिउ कह व जाइ जं सुह विसयपरंमुहउ ३. जिणवरु झायहि जीव तुहुं १९७. जिम लोणु विलिनइ पाणियहं १७६. जीव म जाणहि अप्पणा ११९. जीववहति गरयगइ १०५. जेण शिरंजणि मणु धरिउ ६२. जे पढिया ने पंडिया १५६. जहा पाणहं झुपडा १०८. जोइय जोएं लझ्यइण ९१.

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