Book Title: Pahuda Doha
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Balatkaragana Jain Publication Society

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Page 180
________________ १३० पाहुड-दोहा यदमी परिवर्तन्ते पदार्था विश्ववर्तिनः। नवजीर्णादिरूपेण तत्कालस्यैव चेष्टितम् ॥ . शुभचन्द्रकृत ज्ञानार्णव ६३८. चन्द्र में वनस्पतियों के पोपण करने की शक्ति है इसी लिये उसे ' ओपधीनाम् पतिः' भी कहा है। 'सत्त रज्जु तम पिल्लि करि । [ सात रज्जु अंधकार को पेल कर ] रज्जु जैन सिद्धान्त में एक माप है । इसके अनुसार समस्त लोकाकाश चौदह रज्जु ऊंचा माना गया है। मध्यलोक ठीक बीच में है उससे सात रज्जु नीचे तक अधोलोक, तथा सात रज्जु ऊपर तक ऊलोक है, यथा-- आयामस्तु त्रिलोकानां स्याच्चतुर्दश रजवः । सप्ताघो मंदरादूर्व सार्द्ध तेनैव सप्त ताः॥ हरिवंशपुराण ४, ११. तात्पर्य यह है कि काल का अधिकार मध्यलोक से सात रज्जु ऊपर और नीचे तक है। इतने में वह पदार्थों में परिवर्तन करता रहता है । कुछ तांत्रिक ग्रंथों में चन्द्र और सूर्य शरीर की आंतरिक शक्तियों के लिये भी प्रयोग में आये हैं। २२१. प्राणान् संचरते का अर्थ 'प्राणान् संचारयति । ऐसा लेना ठीक होगा। जो मुख और नासिका के बीच

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