________________
अन्य प्रथों से सम्बन्ध
२३ भग्गी मणहं ण भंतडी
अखइ निरामइ परम गइ तिम दिवहडा गणंति ॥१६९॥ अज्ज वि लउ न लहंति ।। ११४ जिम लोणु विलिज्जइ पाणियह
॥ १७६ ॥
लोणु विलिज्जइ पाणिएण॥ ११८ जइ इक्क हि पावीसि पय जइ केवइ पावीसु पिउ अंकय कोडि करीसु। अकिआ कुड्ड करीसु । णं अंगुलि पय पयडणई पाणिउ नवइ सरावि जिव जिम सव्वंगय सीम् ।। १७७॥ सव्वंगें पइसीसु ॥ ३६६
हेमचन्द्राचार्य कृत व्याकरण में जो दोहे उदाहरण रूप से दिये गये हैं उनके सम्बन्ध में विद्वानों का यही मत है कि वे उस. समय के प्रचलित साहित्य से लिये गये हैं। यह बात सत्य है कि हेमचन्द्र ने उन दोहों को कुछ परिवर्तित रूप में दिये हैं। किन्तु यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि जब एक विद्वान् वैयाकरण व्याकरण के निमयों की पुष्टि में कोई उदाहरण देगा जो वह उसकी जिह्वा से परिमार्जित होकर ही निकलेगा। दूसरे, हेमचन्द्र कवि भी थे, अत: उन्होने दोहों को सार्वजनिक रुचि के अनुकूल बनाकर रखा है। हमारे दोहा नं. ८८ में उन्होने जो परिवर्तन किया है वह उसे सर्वप्रिय बनाने की दृष्टि से ही किया है। उन्होने 'सकल' की जगह 'साधु लोक,' 'सिद्धत्व' की जगह 'वडप्पन' और ' चित्तनैमल्य ' की जगह ' मुक्त-हस्तता' अर्थात् दानशीलता का आरोपण कर दिया है जिससे दोहा आध्यात्मिक