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टिप्पणी.
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नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन । यमैप वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैष आत्मा विवृणुते तन स्वाम् ॥
१, २, २३. १६६. इस दोहे का कठोपनिषद् के निम्न वाक्यों से मिलान कीजिये-- श्रवणायापि वहुभिर्यो न लभ्यः
शृण्वन्तोऽपि बहवो यं न विद्युः । आश्चयों वक्ता कुशलोऽस्य लब्धा
श्वयों ज्ञाता फुशलानुशिष्टः ॥ १, २, ७. नेपा तण मतिरापनीया।
प्रोक्तान्येन सुज्ञानाय प्रेष्ठ ॥ १, २,९. १६७. दोहे का मुख्य तात्पर्य क्या है यह स्पष्ट नहीं हुआ। सम्भवतः उसका भाव यह है कि 'वादे वादे जायते तत्ववोधः ।
१६८. इस दोहे के भाव का अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि वसवर्थ के निम्न लिखित पों के भाव से मिलान कीजिये
Have not we too ? yes, we have, Answers, and we know not whence; Echoes from beyond the grave, Recognised intelligence ! Such rebounds our inward ear Catches sometimes from afarListen, ponder, hold them dear; For of god - of god they are,