Book Title: Padmanandi Panchvinshati
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ , पानन्दि-पश्चविंशतिः २. अन्यका स्वरूप व ग्रन्थकार ग्रन्थका नाम-प्रस्तुत ग्रन्थ अपने वर्तमानरूपमें २६ स्वतंत्र प्रकरणोंका संग्रह है। इसका नाम 'पदूमनन्दि-पञ्चविंशति' कैसे और कब प्रसिद्ध हुआ, इसका निर्णय करना कठिन है । यह नाम स्वयं ग्रन्थकारके द्वारा निश्चित किया गया प्रतीत नहीं होता, क्योंकि, वे जब प्रायः सभी ( २२, २३ और २४ को छोड़कर) प्रकरणोंके अन्तमें येन केन प्रकारेण अपने नामनिर्देशके साथ उस उस प्रकरणका भी नामोल्लेख करते हैं तय मन्थके सामान्य नामका उल्लेख न करनेका कोई कारण शेष नहीं दिखता । इससे तो यही प्रतीत होता है कि ग्रन्थकारने उक्त प्रकरणोंको स्वतन्त्रतासे पृथक् पृथक् ही रचा है, न कि उन्हें एक अन्यके भीतर समाविष्ट करके । दूसरे, जर मन्थके भीतर २६ विषय बर्णित हैं तब 'पञ्चविंशति' की सार्थकता भी नहीं रहती है। उसकी जो प्रतियां हमें प्राप्त हुई हैं उनमें प्रकरणों के अन्तों जिस प्रकार प्रकरणका नामोल्लेख पाया जाता है उस प्रकार उसकी संख्याका निर्देश प्रायः न तो शब्दों में पाया जाता है और न अंकोंमें । हां, उसकी जो मूल श्लोकोंके साथ दूंदारी भाषामय वचनिका पायी जाती है उसमें अधिकारोंका नाम और संख्या अवश्य पायी जाती है । किन्तु यहां भी 'पञ्चविंशति की संगति नहीं बैठायी आ सकी । वहां ययाक्रमसे २४ अधिकारोंका उल्लेख करके आगे 'स्मानाष्टक'के अन्तमें ॥ इति श्री ज्ञानाकनामा पचीसमा अधिकार समाप्त भया ॥ २५ ॥ यह वाक्य लिखा है, तथा अन्तिम 'अनचर्याष्टक'के अन्तमें ॥ इति ब्रह्मचर्याष्टक समाप्तः ॥ २५ ॥ ऐसा निर्देश है । इस प्रकार अन्तके दोनों अधिकारोंको २५वां सूचित किया गया है। ___ वचनिकाकारने ग्रन्थके अन्तमें इस वचनिकाके लिखनेके हेतु आदिका निर्देश करते हुए जो प्रशस्ति लिखी है उसमें भी अन्तिम २ प्रकरणोंकी क्रमसंख्याकी संगति नहीं बैठ सकी है । यथा--- चौवीशम अधिकार जो कयो भानत्यागअष्टक सरदयो । अंतिम ब्रह्मचर्य अधिकार आठ काव्यमें परम उदार ।। यहाँ क्रमप्राप्त 'शरीराष्टक' को २४वां अधिकार न बतला कर उसके आगेके 'मानाष्टक' को २४वां अधिकार निर्दिष्ट किया गया है । दूसरे, इस वचनिकाके प्रारम्भमें जो पीठिकास्वरूपसे अन्यके अन्तर्गत अधिकारोंका परिचय कराया गया है वहां 'परमार्थविंशति' पर्यन्त यथाक्रमसे २३ अधिकारों का उल्लेख करके तत्पश्चात् 'शरीराष्टक' को ही २४वां अधिकार निर्दिष्ट किया गया है। जैसे—...."ता पीछे आठ काव्यनि विषं चौवीशमा शरीराष्टक अधिकार वर्णन किया है। ता पीछे नव काव्यनिविर्षे ब्रह्मचर्याष्टक अधिकार वर्णन करके ग्रन्थ समाप्त किया" । उक्त दोनों वाक्योंके बीचमें सम्भवतः प्रतिलेखकके प्रमादसे "ता पीछे आठ काव्यनिवि पचीसमा मानाष्टक अधिकार वर्णन किया है" यह वाक्य लिखनेसे रह गया प्रतीत होता है। इस प्रकार २४वें अधिकारके नामोल्लेखमें पूर्व पीठिका और अन्तिम प्रशस्तिमें परस्पर विरोध पाया जाता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 328