Book Title: Nyayasangrah
Author(s): Hemhans Gani, Nandighoshvijay
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 8
________________ _ [7] अन्य सभी व्याकरण परम्पराओं में प्राप्त परिभाषाओं के साथ तुलना भी की गई है । जो मुनिश्री की बहुमुखी प्रतिभा की द्योतक है । संपूर्ण विवेचन पढने से लगता है कि मुनिश्री आधुनिक युग के नागेश है। प्रस्तुत विवेचन की एक विशेषता उसकी अभ्यासपूर्ण अनुसंधान की दृष्टि से लिखी गई विस्तृत प्रस्तावना है। प्रस्तावना में परिभाषा का उद्भव एवं विकाश की चर्चा सविस्तर की गई है। साथ ही न्यायसूत्रों की मौलिकता एवं ग्रंथ के वैशिष्टय का विवेचन किया है वह पठनीय है। अन्त में यही कहना उचित होगा कि यह विवेचन न केवल सिद्धहेम परम्परा के अध्येताओं के लिए उपयोगी है किन्तु सभी व्याकरण परम्पराओं के जिज्ञासु एवं विद्वान् के लिए एक महत्त्व पूर्ण संदर्भ ग्रंथ के रुप में ग्राह्य होगा । इसके लिए मुनिश्री को बहुत बहुत धन्यवाद । वि.सं. २०५३, फाल्गुन कृष्ण १३, शनिवार, दि. ५, अप्रिल, १९९७ जितेन्द्र बी. शाह नियामक शारदाबेन चीमनभाई शैक्षणिक शोध संस्थान अहमदाबाद-३८० ००४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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