Book Title: Nighantu Shesh
Author(s): Punyavijay
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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________________ 352 अष्टमं परिशिष्टम् / निघण्टुशेषटीका धन्वन्तरीयनिघण्टु वटो रक्तफलः शुङ्गी न्यग्रोधः स्कन्धजो ध्रुवः / वटो रक्तफलः शृङ्गी न्यग्रोधः स्कन्ध जो' ध्रुवः / क्षीरी वैश्रवणावासो बहुपादो वनस्पतिः // क्षीरी वैश्रवणावासो बहुपादो वनस्पतिः // पत्र. 26 वर्ग 5 लो० 76 पत्र. 184 क्षीरवृक्षे हेमदुग्ध उदुम्बर-सदाफलौ / उदुम्बरः क्षीरवृक्षो हेमदुग्धः सदाफल: अपुष्प-फलसम्बद्धो यज्ञाङ्गः श्वेतवल्कलः // अपुष्पफलसम्बन्धो यज्ञाङ्गः शीतवल्कलः // पत्र. 27 वर्ग 5 लो. 86 पत्र. 186 काकोदुम्बरिका फल्गू राजीफल्गु[शि]वाटिका। काकोदुम्बरिका फल्गू राजिफल्गुः शिवाटिका। फाल्गुनी फलभारी च मलयूः श्वित्रभेषजम् // फल्गुनी *फलसंभारी मलयूश्चित्रभेषजा // पत्र. 27 वर्ग 5 श्लो. 88 पत्र. 187 क्षीरिकोक्ता च राजन्या क्षीरभृद् क्षीरी चोक्तस्तु राजन्यः स क्षीर शुक्लरूपको नृपः / को नृपः / राजादनो दृढस्कन्धः कपीष्टः प्रियदर्शनः // राजादनो दृढस्कन्धः कपोष्टः प्रियदर्शनः // पत्र. 28 वर्ग 5 श्लो० 91 पत्र. 187 प्रियालोऽथ खरस्कन्धश्चारो बहुलवल्कलः / प्रियालोऽथ स्वरस्कन्धश्वारो बहुलवल्कलः / सन्नकद्रुश्चापपटो ललनस्तापसप्रियः // स्नेहबीजश्चापवटो ललनस्तापसप्रियः // पत्र. 28 वर्ग 5 लो० 72 पत्र 183 आम्रातकः पीतनकः कपिचूतोऽम्लपाटकः / आम्रातकः पीतनकः कपिचूतोऽम्लवाटकः / शुङ्गी कपिरसाढ्यश्च तनुक्षीरः कपिप्रियः गङ्गी कपी रसाव्यश्च तनुक्षीरः कप्रियः / / पत्र. 29 _वर्ग 5 श्लो० 12 पत्र. 171 अर्कः सूर्याह्वयः पुष्पी विष्किरोऽथ विकीरणः / अर्कः सूर्याह्वयः पुष्पी विक्षीरोऽथ विकीरणः / जम्भलः क्षीरपर्णः स्यादास्फोटो भास्करो रविः॥ जम्भलःक्षोरपर्णी स्यादास्फोटो भास्करो रविः / / . पत्र. 29 वर्ग 4 लो० 13 पत्र. 136 राजाओं वसुकोऽन्योऽर्को मन्दारो गणरूपक / राजाके वसुकोऽत्यक मन्दारो गणरूपकः / एकाष्ठीलः सदापुष्पी सुधा-ऽलर्कः प्रतापसः // एकाष्ठीलः सदापुष्पी स चालकः प्रतापनः॥ पत्र. 30 वर्ग 4 श्लो० 16 पत्र. 137 स्नुक् सुधा च महावृक्षो गुडा निस्त्रिंशपत्रकः / स्नुक स्नुही च महावृक्षो गुडा निस्त्रिंशपत्रकः / समन्तदुग्धा गण्डीरः सीहुण्डो वज्रकण्टकः // समन्तदुग्धा गण्डीरः सीहुण्डो वज्रकण्टकः / / पत्र. 31 वर्ग 1 *लो. 235 पत्र. 55 करमर्द कमाविग्नं सुषेणं पाणिमर्दकम् / करमर्दकमाविग्नं सुषेण पाणिमर्दकम् / कराग्लं करमन्दं च कृष्णपाकफलं मतम् // कराग्लं करमर्द च कृष्णपाकफलं मतम् // पत्र. 31 वर्ग 5 श्लो० 102 पत्र 190 जम्भीरो जम्भलो जम्भः प्रोक्तो दन्तशठस्तथा। जम्बीरो जम्भलो जम्भः प्रोक्तो दन्तशठस्तथा। जम्बीरो वक्त्रसोधी च रोचनो दन्तहर्षणः // गम्भीरो वक्त्रशोधी च रोचनो दन्तहर्षणः / / पत्र. 32 वर्ग 5 श्लो. 14 पत्र. 171 1 जो द्रमः ग. // 2. फलकान्तारो ग.। 3. चारो हि बहुव क. ख.ङ. // 4. वातकः। ङ. छ. // 5. कोऽध्यर्को //

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