Book Title: Nighantu Shesh
Author(s): Punyavijay
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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________________ 360 अष्टमं परिशिष्टम् / हरिद्रा पीतिका पिण्डा रजनी रजनी निशा। हरिद्रा पीतिका पिता रजनी रञ्जिनी निशा। गौरी वर्णवती पीता हरिता वरवर्णिनी // गौरी वर्णवती पीता 'हरिता वरवर्णिनी / ... ... ... ... ... ... ... ... ... अन्या दारुहरिद्राऽपि हरिद्रः पीतचन्दनम् // अन्या दारुहरिद्रा च पीतद्रः पीतचन्दनम् // निर्दिष्टा वै कण्टकिनी स च कालेयकः स्मृतः। निर्दिष्टा काष्ठरजनी सा च कालेयकं स्मृतम्। कालीयको दारुनिशा दा:-पीतट्ठ कालायकं दारुनिशा दीं पीतापी तकम् कटङ्कटेरी पर्जन्या पीतदारु पचम्पचा / कटङ्कटेरी पर्जन्या पीतदारुः पचम्पचा / / हेमवर्णवती पीता हेमकान्ता "कुसुम्भका / पत्र. 92 वर्ग 1 श्लो० 54, 57-59 पत्र. 17 18 स्थौणेयक वह्निचूडं शुकगुच्छं शुकच्छदम् / स्थौणेयकं बहिचूडं शुकपुच्छं शुकच्छदम् / विकीर्ण शुकबह च हरितं शीर्णरोमकम् // विकर्ण शुकबह च हरितं शीर्णरोमकम् // पत्र 93 . वर्ग 3 लो० 69 पत्र 110 स्पृक्का स्पृग ब्राह्मणी देवी लता लङ्को स्पृक्काऽसृग् ब्राह्मणी देवी मालाली यिका मरुत् / __ कोटिका मता। पङ्कमुष्टिदेवपुत्रो निर्माल्या पिशुना वधूः // पञ्चमुष्टिदेवपुत्री निर्माल्या पिशुना वधूः / / पत्र. 94 वर्ग 3 श्लो० 62 पत्र. 108 विडङ्का जन्तुहन्त्री च कृमिघ्नी चित्रतण्डुला / विडॉ जन्तुहन्त्री च कृमिघ्नी चित्रतण्डुला / तण्डुलः कृमिहाऽमोगा केरला मृगगामिनी // तण्डुली कृमिहाऽमोघा कैरला मृगगामिनी // पत्र, 95 वर्ग 2 श्लो० 11 पत्र. 71 ऋषभो धूर्वहो धीरो मातृको वृषभो वृषः / ऋषभो दुर्धरो धीरो मातृको वृषभो वृषः / विषाणी ककुदीन्द्राक्षो बन्धुरो गोपतिः स्मृतः॥ विषाणी ककुदिन्द्राक्षो बन्धुरो गोपतिस्तथा। पत्र. 96 वर्ग 1 श्लो०१२५ पत्र. 30 ऋद्धिर्वृद्धिः सुखं सिद्धी रथाङ्गं मङ्गलं वसु / ऋद्धिवृद्धिः सुखं सिद्धी रथ झं मङ्गलं वसु / ऋषिसृष्टा युगं योग्यं लक्ष्मीः सर्वजनप्रिया // 'ऋषिसृष्टा युगं योग्यं लक्ष्मीः सर्वजनप्रिया / पत्र. 96 वर्ग 1 श्लो०११५ पत्र. 34 ककुष्ठं काककुष्ठं तु विडॉ रङ्गदायकम् / कडकुष्ठं कालकुष्ठं च विरङ्ग रङ्गनायकम् / रेचकं पुलकं ह्रासं शोधनं काकपालकम् // रेचकं पुलकं ह्रासं शोधनं कालपालकम् // पत्र. 97 वर्ग 3 श्लो०१४१ पत्र 123 परूषकः परः प्रोक्तो नीलपर्णः परापरः। परूषकं परु प्रोक्तं नीलवर्ण "परावरम् / परिमण्डलमरूपास्थि परुषं चापि नामतः // परिमण्डलमध्यास्थि १२परुषं चापि नामतः // पत्र. 98 वर्ग 5 लो०६२ पत्र 180 1. हरिद्रा बरं क. ख. ग. घ. ङ // 2. च हरिद्रा पीत झ. // 3. यका स्मृता / क. च; यकः स्मृतः / ग. घ // 4. पीतका। क. घ. ङ. च // 5. कुसुम्भला। घ. उ. च. // 6. धीरः श्रीमानृषभको वृषः क. घ. उ. च. / / 7. वृषाणी क. ख. // 8. ऋषिश्रेष्ठा क. छ. च. // 9. रङ्गदाय क. ख.॥१०. नीलपर्ण छ. ण. // 11. परापरम् / ङ. छ. झ. ण. // 12. मल्पास्थि

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