Book Title: Nighantu Shesh
Author(s): Punyavijay
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 413
________________ 376 अष्टमं परिशिष्टम् / निघण्टुशेषटीका धन्वन्तरीयनिघण्टु नलो नडो नटश्चैव स च पोटगलः स्मृतः।। नडो नटो नलश्चैव स च पोटगलः स्मृतः / धमनो नर्तको रन्ध्री शून्यमध्यो विभीषणः // धमनो नर्तको रन्ध्री शून्यमध्यो विभीषणः // पत्र. 201 वर्ग 4 लो० 141 पत्र. 162 शरो बाण इक्षुकाण्डः इक्ष्वट: सायकः क्षुरः। शरो बाण इषुः काण्ड उत्कट: सायकः क्षुरः / स्थूलोऽन्य इक्षुरः प्रोक्त इक्ष्वारश्च पिता स्थूलोऽन्य इक्षुकः प्रोक्त इक्षुरश्चापि नामतः। महः // वर्ग 4 श्लो० 135 पत्र. 161 पत्र. 202 नीलो दूर्वा स्मृता शस्या शावलं हरित तथा। नीलदूर्वा स्मृता शप्पं 'शाद्वलं हरितं तथा / शतपर्वा शीतवीर्या शीतवल्ल्यसिता लता॥ शतपर्वा शीतवीर्या शतवेल्ल्यपि शीतला // पत्र. 203-4 __ वर्ग 4 लो० 143 पत्र. 163 श्वेतदूर्वा तु गोलोमी श्वेतदण्डी सिता लता। श्वेतदूर्वा तु गोलोमी श्वेतदण्डासिता लता। सहस्रवीर्याऽनन्ता च दुर्मरा भार्गवी रुहा // सहस्रवीर्याऽनन्ता च दुर्मरा भार्गवी रुहा // पत्र. 204 वर्ग 4 लो० 141 पत्र. 163 गण्डदूर्वा तु गण्डाली तीवा मत्स्याक्षिकाऽपि च। गण्डदूर्वा च गण्डाली तीवा मत्स्याक्षिकाऽपि च / वल्ली नाडी कलायश्च धारणी शकुलाक्षिका // 'बह्वी नाडी कलापश्च वारुणीशकुलाक्षिका / / ___ वर्ग 4 श्लो० 145 पत्र. 163 पत्र. 204 मुस्तमम्बुधरो मेघो घनो राजकशेरुकः / "मुस्ता चाम्बुधरो मेघो घनो राजकसेरुकः / भद्रमुस्तो वराहोष्ट्रो गाङ्गेयः कुरुविन्दकः / / भद्रमुस्तो वराहोऽब्दो गाङ्गेयः कुरुविन्दकः // वर्ग 1 लो० 40 पत्र. 15 पत्र. 205 परिपेलं प्लवं वन्य गोपुरं स्यात् कुटन्नटम् / परिपेल प्लवं वन्यं गोपुरं स्यात् कुटन्नटम् / सितपुष्पं दासपुरं गोनद जीर्णपुष्पकम् // शतपुष्प दाशपुरं गोनदै जीवनकम् // पत्र. 205 वर्ग 3 श्लो० 55 पत्र. 107 उशीरं च मृणालं स्यादभयं समगन्धिकम् / उशीरं च मृणालं स्यादभयं समगन्धिकम् / रणप्रियं वीरतरं वीरं वीरणमूलकम् // रणप्रियं वीरतरं वीरं वीरणमूलकम् // पत्र. 206 वर्ग 3 लो० 11 पत्र. 96 लामज्जकं सुनालं स्यादमृणालं लयं लघु / लामज्जकं सुनालं स्यादमृणालं लवं लघु / इष्टकापथकं शीतवीर्य मूलं जलाशयम् // इष्टका पथकं शीघ्र दीर्घमूलं जलाश्रयम् // पत्र. 207 वर्ग 3 श्लो० 86 पत्र. 113 राजक्षवक इत्यन्यो राजिका कृष्णसर्षपः / राजक्षवक इत्युक्ता राजिका कृष्णसर्षपा / क्षुताभिजननश्चैव स चोक्तो राजसर्षपः // क्षुधाभिजनका चैव सा चोक्ता राजसर्षपः // पत्र. 218 वर्ग 4 श्लो० 43 पत्र 143 असुरी राजिका राजी कृष्णिका रक्तसर्षपः / आसुरी राजिका राजी कृष्ण का रक्तसर्षपः / तीक्ष्णगन्धा चातितीक्ष्णा क्षुरकः क्षुवकः क्षवः॥ तीक्ष्णगन्धा चातितीक्ष्णा क्षुवकः क्षवकः क्षवः / / पत्र. 218 वग 4 श्लो. 6. पत्र. 146 1. शाइवलं क. ग. घ. छ. छ. ण. त. // 2. वल्ली च शीतला क. // 3. शिता क. ख. ग. ङ. // 4. बाहली ण. // 5. मुस्तमम्बुधरो ग. छ. च. छ //

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