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४ प्रमाण व नय -
५४ २. अखडित व खंडित ज्ञान का अर्थ .
नही जान पाते पर अखंडित चित्रण देखने पर चन्द्रमा आपको प्रत्यक्ष प्रतिविम्ववत् दीखने लगता है। धारारूप चित्रण के उन धब्बे मे चन्द्रमा है अवश्य पर केवल उसके लिये जो कि उसे अखंडित चित्रण का रूप दे पाया है, सर्व साधारण के लिये उसमे चन्द्रमा है ही नहीं, क्योंकि उसे वहा उस की प्रतीति होती ही नहीं। इसलिये उसके लिये उन धब्बो का कोई मूल्य नही, पर अखडित चित्रण वनाने वाले के लिये वहृत मूल्य रखते है।
___ इसी पर से सिद्धांत निकालना है । वक्ता के धारा प्रवाही वचन, वास्तव मे उसके हृदय पट पर खिचे हुए वस्तु के प्रतिविम्व या चित्रण का खडित रूप है । या यो कहिये कि उसके हृदय पट पर खिचा चित्रण अखडित चित्रण है जो वस्तु के अनुरूप है, और उसके वचन उसी वस्तु का धारा रूप चित्रण है । यह वचनो मे निवद्ध धारा रूप चित्रण आप कर्ण इन्द्रिय द्वारा ग्रहण करते है । इसमे आपको केवल आगे पीछे सुने जाने वाले कुछ शब्दो मात्र की ही प्रतीति हो पाती है । जो केवल उस धारारूप चित्रण पर के धब्बोवत् है । यदि इस धारा को तानारूप तान कर आप इसको अखडित चित्रण में परिवर्तित कर सके, तो वे शब्द रूप धब्बे आपके लिये भी वस्तुभूत बन जायेगे, विल्कुल उसी प्रकार जिस प्रकार कि वक्ता के लिये है। इसके द्वारा आपके हृदय पट पर बनाया गया अखडित चित्रण विल्कुल वक्ता के चित्रण के अनुरूप ही होगा। अखडित चित्रण में परिवर्तित होने से पहिले शब्द रूप धब्बो का आपके लिये कोई मूल्य नही, इसलिये वे वक्ता के लिये सारात्मक होते हुए भी आपके लिये नि सार है।
इस अखडित चित्रण रूप ज्ञान को ही आगम मे प्रमाण शब्द का वाच्य बनाया गया है, और क्योकि इसमे कोई संशय या विपरीतपना या 'क्या कुछ है या नही' इस प्रकार के अनध्यवसायपने का अभाव रहता है, इसलिये इसी अखंडित चित्रणरूप प्रमाण ज्ञान को ही सम्यग्ज्ञान