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४. प्रमाण व नय
५२ २ अखडित व खडित ज्ञान का अर्थ
ऐसा कि ज्यो का त्यों इस सूक्ष्म छिद्र के द्वार से यह इस डब्बे मे प्रवेश पा सके । आप विचारते होगे कि क्या यह भी सम्भव है कि लम्वाई चौड़ाई व मोटाई को रखने वाला यह चित्र, इस छिद्र मे प्रवेश पा जाये। कुछ अनहोनी सी बात दीखती है, पर वास्तव मे ऐसा नहीं है । आओ हम इसे इस छिद्र के मार्ग से ज्यों का त्यो इस डब्बे मे प्रवेश करके दिखाये।
यदि इस चित्र को ब्लेक बोर्ड की बजाय एक लम्बे धागे पर उतार दिया जाये और वह धागा धीरे धीरे इस छिद्र के मार्ग से डब्बे मे डाल दिया जाये तो क्या चित्र ज्यो का त्यो डब्वे मे न पहुच जायेगा? पर यह बात भी कुछ अटपटी सी लगती है। धागे पर चित्र को कैसे उतारे? सो भाई! वैज्ञानिक की भाति विचार करे तो सब कुछ सम्भव हो सकता है। देखो मै बताता हूँ इसका उपाय और कितना सरल है। यहा इस लम्बे धागे को इस गत्ते के छोटे से टुकडे पर ऊपर से नीचे तक लपेट दीजिए, इस प्रकार कि प्रत्येक धागे का लपेट एक दूसरे से सट कर रहे, जैसे कि हुक्के पर धागे लपेटे जाते है। इस प्रकार करने से धारा रूप यह लम्बा धागा एक कागज या वोर्डवत् चौडा ताना बन गया अब यह बोर्ड पर के चन्द्रमा का चित्र इस ताने पर स्याही से बना दीजिए । क्या बनाना संभव नही है ? नही, यह तो सम्भव है ।
जिसप्रकार कागज पर चित्र ड्राइंग करते है यहां भी कर सकते है। अच्छा देखो यह चित्र धागे के इस ताने पर बन गया। अब लीजिए इस धागे का एक सिरा पकड' कर खेचना प्रारंभ कीजिए, और इस छिद्र के मार्ग से यह धागा इस डब्बे मे प्रवेश करा दीजिए । धीरे धीरे गत्ते के टुकड़े पर से धागा उघडता या खुलता जायेगा और डब्बे में जाकर इकट्ठा हो जायगा। क्या चित्र डब्बे मे नही पहुच गया है ? अवश्य पहुंच गया है।
अब यह विचारना है कि क्या धागे का यह ढेर जो डब्बे मे यो ही पडा हआ है कोई चित्र के रूप मे दिखाई देता है ? नही यदि ऐसा कोई