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४. प्रमाण व नय
५० २. अखडित व खडित ज्ञान का अर्थ प्रदेशो तक पहुच रहे है, या जो आप आगम मे पढ कर नेत्र द्वारा ग्रहण कर रहे हैं । वक्ता के तो शब्द सत्य है क्योंकि वे तो उस अन्तरंग मे पडे चित्रण को खडित करके निकल रहे है, पर आप मे वही शब्द ! सत्यता का रूप उस समय तक धारण नही कर सकते, जब तक कि आपके हृदय पट पर भी इन शब्दो के भावो को एकत्रित करके, वहीं चित्रण अकित न हो जाए।
दृष्टांत रूप से टेलीविजन सैट (Television Set) ले लीजिए। एक चित्र आज एक स्थान से वे तार के तार (Wire less) द्वारा दूसरे स्थान पर भेज दिया जाता है । अमेरिका में बोलने वाले वक्ता के वचन सुनने के साथ साथ आज आप उनका चित्र भी अपने घर वैठे हुए ही अपने टेलीविजन सैट की स्क्रीन पर देख सकते हो। किस प्रकार चित्र वहा से यहां आना संभव हो सका? यह बात तो आप जानते है, कि यह कार्य बिजली के माध्यम द्वारा किया जाता है। पर विजली तो धारा रूप है, एक समय में सारी की सारी प्रगट हो सके ऐसी नही है, वह तो बहने वाली है, पर चित्र तो धारा रूप नहीं है, वह तो सारा का सारा एक दम ही देखा जाता है । वचन तो धारा रूप होते है, एक के पीछे एक आते है, पर चित्र तो इस प्रकार नहीं होता कि उसका एक अंग अर्थात् सिर पहले दिखाई दे, नाक उसके पीछे पाव अन्त मे । वह तो सारा का सारा एक ही समय दृष्ट होता है। अत. वचनो को विजली की धारा रूप से परिवर्तित किया जाना भले सभव हो सके, पर चित्र को धारा बनाना कैसे संभव है, और उसको धारा बनाये बिना बिजली रूप से परिवर्तन कैसे सभव है । सो भाई ! ठीक है, चित्र वास्तव में स्वयं धारा रूप नही है अर्थात् आगे पीछे देखा जाने योग्य भी नही, वह तो अक्रम रूप से एक दम ही देखा जाता है, पर विज्ञान ने उसे धारा का रूप दे दिया है।
टेलीविजन के सिद्धांत मे जो प्रक्रिया चलती है वही यहां ज्ञान पट पर चलनी चाहिये । टेलीविजन में पहले कैमरे में ग्रहण किये गये