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क्रियाओमां राखg जोइतुं सावधानपणुं॥ (१५)
वळी प्रीति, भक्ति वचन अने असंग ए चार अनुष्ठानोना स्वरूप पण अवश्य जाणवा लायक तथा उपादेय ते आदरवालायक छे.
देवपूजा, गुरुभक्ति प्रतिक्रमण, देववन्दन, प्रतिलेखनादि दरेक शुभक्रियाओ करतां खेदादि चित्तअन्तःकरणना दोषोनो अवश्य त्याग करवो.
खेद-क्रिया करता कंटाळो आववो, त्यां विचार के हे चेतन ? बीजाओनी द्रव्यादि लालसाए गुलामगीरी करतां, आरंभादि कामोमां रहने कंटाळो आवतो नथी के जे केवळ संसारवृद्धिन कारण छे. अने आ क्रिया रहने मुक्तिनुं निदान प्राप्त थइ छे माटे आमां कंटाळो लावीश नहि.
उद्वेग-क्रिया उपर अरुचिभाव, हे चेतन ! अहितकारिणी क्रियाओ करी करी भव बगाडयो त्यां अरुचि न आवी आ क्रिया एकान्त हितकारिणी छे आमा अरुचि लावीश नहि. ..... क्षेप-एक पण आरंभेली क्रिया प्रत्ये चित्तनी