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मन्दिसूत्रम्।
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प्रस्तावना।
तेना प्रथम सूत्रना विवेचनमा पू. हरिभद्र सू. म. जणावे छे के 'ते वर्धमान अवधि प्रशस्त अध्यवसायस्थानोमां IN वर्तता (अर्थात् अविरत सम्यग्दृष्टि) तेमज वर्धमान चारित्रवाळा (अर्थात् देशविरत सर्वविरत) जे विशुद्ध भावमा अने विशुद्ध चारित्रमा वर्तता होय छे, तेमने सर्व रीते चारे बाजुथी अवधि वधे छे. ज्यारे चूर्णिकार 'पसत्थअज्झवसाणातो य चरणादिविशुद्धितो य चरणपच्चयलद्धीए बड़ढी भवति' अर्थात् प्रशस्त अध्यवसायथी चरणात्मकविशुद्धि थाय छे. तेनाथी चरणप्रत्ययिक आत्मलब्धिनी वृद्धि थाय छे. आम तेओने चरणप्रत्ययिक लब्धिनी वृद्धि थाय छ तेम जणावे छे. आना समाधानमा एम जणाववानुं मन थाय छे के चूर्णिकारनु कथन लोकावधि तेमज परमावधि माटे होय. जेना अधिकारी श्रावक होइ शके नहीं. ज्यारे पू. हरिभद्रमरिमहाराजे आ बे साथे अन्य वर्धमान अवधिनो पण समावेश थाय ते माटे आम जणाव्यु हशे एम संभवे छे. तेथी एटलुज नकी थाय के पंचम गुणस्थानके लोकावधि तेमज परमावधि न होय. त्यारवाद नियुक्तिनी गाथाओ मूकवामां आवी छे. जेमां अवधिनुं जघन्य मध्यम अने उत्कृष्ट क्षेत्र बताव्युं छे. ते आ प्रमाणे समजवु.
ज्यारे १००० योजनना देहमानवाळो मत्स्य पोताना शरीरमांथी नीकळीने क्रमे करीने पोताना आत्मप्रदेशने संकोचतो पोताना ज शरीरनी बहारना एक देशमा सूक्ष्मपनक (निगोद)रूपे पेदा थाय छे. त्यारे तेमां उत्पन्न थवानी अपेक्षाए त्रीजा समयमां एनी जेटली अवगाहना होय तेटला प्रमाण- अवधिज्ञाननुं जघन्य क्षेत्र जाणवु'.
[१] अहीं पू. हरिभद्रसूरि महाराजे 'वर्तमान' एवो अर्थ करेल छे, अने तेओए 'वट्टमाण एवो पाठ स्वीकार्यों छे.
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