Book Title: Nabhakraj Charitra
Author(s): Merutungacharya, Gunsundarvijay
Publisher: Divya Darshan Trust
View full book text
________________
वर्तमान शासनाधिपति श्री महावीरस्वामि सर्वज्ञाय नमः श्रीमद् विजय प्रेम - भुवन भानु - जयघोष - जगच्चंद्रसूरिवरेभ्यो नमः
प्राक्-कथन
पू. आचार्य श्री विजय जगच्चंद्रसूरिजी महाराज के आशीर्वाद से वि.सं. २०६२ का मौन एकादशी पर्व के प्रसंग पर श्री वासुपूज्य स्वामी जिनालय, झवेर रोड, मुलुंड वेस्ट, मुंबई में ठहरना हुआ । वहाँ श्रीमद् अंचलगच्छेश मेरुतुंग सुरीश्वरजी महाराज द्वारा संस्कृत भाषा में लिखित श्री नाभाकराज चरित्र की प्रत प्राप्त हुई । उसे पढ़ा । बहुत अच्छी लगी । तीन-चार बार उसे पढ़ लिया । इसमें तीन भव्यात्माओं की कथा दी गई है । एक ने देवद्रव्य का रक्षण किया तो तीन भव में उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई, और दो आत्माओं ने देवद्रव्य का भक्षण किया तो इनको उन्नीस कोटाकोटी सागरोपम तक दुर्गति के दुःख मिले ।
वर्तमान समय में देवस्थान के द्रव्यों पर सरकार की नज़र बिगड़ी है ऐसा जान पड़ता है । अनेक हिन्दु मंदिर आदि के वहिवट सरकार ने अपने हाथो में ले लिए हैं । पब्लिक ट्रस्ट एक्ट जैसे कानूनों के द्वारा धार्मिक संपत्ति को अधिक से अधिक अपने अधिकार में हड़प लेने के प्रयत्न हो रहे हैं । अनेक कर - टेक्ष डाले गये हैं, अधिक डालने के लिए कार्यवाही होती रहती है । संयोग अति विषम हो गये हैं ।
समज़दार जैन लोग तो देवद्रव्य आदि धार्मिक द्रव्य की यथाशक्ति देखभाल - रक्षा करने के लिए तत्पर रहते ही हैं । उनकी यह समज़ अधिक दृढ़ हो इस हेतु से श्री नाभाकराज चरित्र का पठन बहुत सहायक बनेगा ऐसा सोचकर ही उसका गुजराती भावानुवाद करने के लिए प्रेरित हुआ हूँ । अब यहाँ यह हिन्दी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 66