Book Title: Murti Mandan Prakash
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 7
________________ - - - - - (५) जुदागाना असर दिलपर हरइक मूरत का होता है । भला फिर किस तरह कहते हो यह नाकाम मूरत हैं ॥ २४॥ खड़ाओं रामके चरणों की रखकर तख्तके ऊपर ।। भरतने क्यों झुकाया शीश वह लकड़ी की मूरत है ।। २५॥ करें सिजंदा अगर पत्थर समझ कर तबतो काफर हैं। कुफर क्यों आएगा समझें अगर रहबर की मूरत है ।। २६ ॥ इसे मानो न मानो यह तो साहिब आपकी मरजी ॥ न्यायमत कोई बतलादे कि क्यों नाकाम मूरत है ॥ २७ ॥ - (चाल वजारा) टुक हिरी हवा को छोड मियां मत देश विदेश फिरे मारा ॥ अब वहमो गुमां कर दूर जरा क्यों मूरतसे घबराता है । यह सारी चीजें मूरत हैं तो कुछ पीता खाता है । क्या तख्त पिलंग और ताज निशांक्या किले महल बनवाताहै। क्या बग्घी टमटम हाथी घोड़े जिनपर आता जाता है ।। सब खेल बना है मूरतका यह नजर तुझे जो आता है। अब वहमो गुमां कर दूर जरा क्यों मूरतसे घबराता है ॥१॥ यह हाथ पाओं सब मूरत हैं मूरतका अजब तमाशा है। मूरत ही खेल खिलोने हैं मूरतही खील पताशा है ।। क्या कांटा तोला रत्ती है क्या माशा है दो माशा है । क्या बालक बच्चा पीरोजवांक्या जिन्दा है क्या लाशाहै। सब खेल बनाहै मूरतका यह नजर तुझे जो आता है ॥ १ नमस्कार-२ नास्तिक-३ रस्ता बताने वाला - - - - - - -

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