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( १३ )
पक्षपातको छोड़कर करियो जरा बिचार || सत मारग निश्चय करो उतरो भवदधि पार ॥ ७ ॥
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जीन और प्रकृति का विवेचन ॥
चाल - कहां लेजाऊ दिल दोनो जहां में इसकी मुशकिल है ॥ अजब दुनिया की हालत है अजब यह माजरा देखा || जिसे देखा उसे वहम गुमांमें सुन्तला देखा ॥ १ ॥ प्रकृती जीव में अनमेल सा झगड़ा पड़ा देखा || अनादी कालसे लेकिन है दोनों को मिला देखा ॥ २ ॥ दोनों का हमने वस निजाग जावजा देखा || कहीं इन्सां कहीं वां कहीं शाहो गदा देखा ॥ ३ ॥ यही है आत्मा जिसको अश्वमें रूह कहते हैं ॥ ज्ञान मय सत् चिदानन्द रूप लाखों नाम लेते हैं ॥ ४ ॥ कहीं माद्दा कहीं माया कहीं मैटर कहीं पुदगल || यह सारे नाम हैं उसके जिसे प्रकृती कहते हैं । ५ ॥ वशकले दूध पानी गो मिले आपसमें रहते हैं | मगर दर अस्ल यह दोनों जुदा हर इकसे रहते हैं ॥ ६ ॥ करम कहते हैं जिसको वह यही बदकार माया है ॥ इसने सारी दुनिया में अजब अंधेर छाया है ॥ ७ ॥ यही तो आतमाको भर्मके चक्कर में लाया है || हरीहर नर सुरासुर सबको दीवाना बनाया है ॥ ८ ॥