Book Title: Murti Mandan Prakash
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 18
________________ -- - - कहीं मस्तक पसारे सब अदच करने की सूरत है।॥ ८॥ कहीं पूजा कहीं घंटा कहीं फूलोंका अर्चन है ॥ कहीं अक्षत कहीं पर जल कहीं कुछ और सूरत है ॥ ९॥ इसी हेतु से उस भगवंतकी मूरत बनाते हैं । बिनय करके दरब अरिहंत चर्णों में चढ़ाते हैं ॥ १० ॥ देख बैराग मुद्राको भेद विज्ञान होता है । निजानन्द रसको पीकरके परम आनन्द पाते हैं ॥ ११ ॥ मगन हो न्यायमत ईश्वरका जब धनबाद गाते हैं । इधर आनन्द पाते हैं उधर घंटा बजाते हैं ॥१२॥ प्रयोश मूर्तिका निषेध ॥ चाल-कहां लेजाऊ दिल दोनो जहां में इसको मुशकिल है ॥ वह अज्ञानी है जो ईश्वरको भी रागी बताते हैं । सुलानेको जगानेको अगर घंटा बजाते हैं।॥ १ ॥ हैं गल्ती पर जो ईश्वरके लिये भोजन बनाते हैं। मान कर फिर उसे परशाद भोग अपना लगाते हैं ॥ २ ॥ हैं मूरख वह भी जो ईश्वरको फूलों में बताते हैं। उसे हर जा पवन जल आग पत्थरमें जिताते हैं ॥३॥ जो अज्ञानी की बातें मानकर चक्करमें आते हैं ।।। बिना हेतुके ईश्वरको सरब ब्यापी बताते हैं॥४॥ -

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