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(३७) उसीदम बनमें जा पहोंचे हकीकत सब सुनानेको ॥ ६॥ ऋषी बिश्नुकुमर जीको सुनाया हाल जा सारा ।। ऋषी घबरागए सुनकर हवे तय्यार जानेको।।७।। तपोबलसे मुनीने जाके धारा रूप बामनका ॥ गए बलके दवारे बलको छल काबूमें लानेको ॥८॥ राज सब लेलिया बलका जब अपने बिक्रियाबलसे ॥ गए जल्दीसे बनमें आप ऋषियोंके बचानेको ॥ ९॥ अगन चारों तरफसे लगचुकी थी वक्त नाजुक था। ऋषी सब ध्यान में थे लीन कर्मों के जलानेको ॥१०॥ हस्तनापुर में मातम छारहा था सारे व्याकुलथे। दियाथा त्याग सबनेगममें पानी और खानेको॥११॥ श्री विश्नु कुमर ने बस उसी दम तप की शक्ती से ॥ नीर बरसा दिया बन में लगी आतिश बुझाने को ॥ १२ ॥ बचाकर सब मुनों को और धरम पभोवना करके। ऋषी पहुंचे गुरु के पास फिर से योग पाने को ॥ १३ ॥ शहर वालों ने भी ऋषियों को दे आहार व्रत खोला ।। सलूनो आज तक कायम है याद इसकी दिलाने को ॥ १४॥ न्यायमत एक वह भी वक्त था सागी मुनि भी तो ।। सदा तय्यार थे आरों की विप्ता के मिटाने को ।। १५॥
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अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का रण में जाने को तय्यारहानो और उसकी माता सुभद्रा का अभिमन्यु को जानेसे रोकना-अभिमन्यु का न मानना औररणमें चला
जाना॥