Book Title: Murti Mandan Prakash
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 41
________________ - - - - - - - - (३९) जगसे मिथ्यातका अंधेर हटाया तूने ।। ज्ञानका दुनियामें परकाश कराया तूने ॥२॥ तू न रागी है न देषी नहीं क्रोधी मानी ॥ सारी दुनियाको हितोपदेश सुनाया तूने ॥ ३ ॥ जग अनादि है नहीं कोई भी करता हरता । द्रव्य गुण सारे अनादि हैं बताया तूने ॥ ४॥ न्यायमत सीस झुकाता है तेरे चर्गों में ॥ धन्य है मोक्षके रस्ते में लगाया तूने ॥ ५॥ । । - शुभम् - इति मूर्ति मंडन प्रकाश (जैन भजन पुष्पांजली) समाप्तम् ॥ - । - - - -

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