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( २७ ) शंक निवारण कारणे पत्र लिखे दो चार ॥ १ ॥ मित्र बिहारीलालजी हमसे किया बिचार || सो हम यह उत्तर लिखा निज बुद्धि अनुसार ॥ २ ॥ सत्तर सात उन्नीस सौ (१९७७) जानो बिक्रम साल ॥ न्यामत सिंह पत्री लिखी हस्त बिहारीलाल ॥ ३ ॥ आद अन्त जिनराजका धर्म सदा सुखकार || धर्म बिना इस जीवका कोई नहीं हितकार ॥ ४ ॥
(तृतीय भाग इतिहासिक व सर्वोपयोगी भजन)
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चाल - कौन कहता है कि मैं तेरे खरीदारों में हू ॥
कौन कहता है अरे चेतन तू होशियारों में है | तू निपट नादान मूरख और नाकारों में है ॥ १ ॥ करता है पेचीदगी लोटन कबूतर की तरह || साफ जाहिर है कि तू अय्यार मक्कारों में है ॥ २ ॥ है दयाका रहमका नामो निशां तुझमें नहीं || तू दिलाजारों में है जालिम सितमगारों में है ॥ ३ ॥ न्हाके डाले खाक अपने तनपे हाथी जिसतरह ! इस तरह तू भी दीवाना ना समझदारों में है ॥ ४॥ जिस तरह रेशनका कीड़ा अपने तारों में फंसे ॥ देखले तूभी फंसा खुद कर्म के तारों में है ॥ ५ ॥